Book Title: Jain Digvijay Pataka Author(s): Publisher: ZZZ Unknown View full book textPage 6
________________ 1 [ व उच्च शिक्षा देने का दिया है और भोजनादि विशेष भक्ति में करता हूं, मेरे माननीय होने से ३२ हजार भारतवासी राजा तथा प्रजा इन को पूज्य भाव से मानते है, तब परमेश्वर ने कहा हे भरत! तेने तो अच्छा ही किया है लेकिन आगामी काल में इन का वंश वृद्धि पाकर भिन्न २ जाति स्थापित होगी | नवमें सुविधनाथ श्रत के निर्वाण पीछे जिन धर्म के साधु विच्छेद होंयगे तब सर्व प्रजा इनको धर्म पूछेंगे उस समय यह अपने महत्व की पुष्टि निज स्वार्थ सिद्ध्यर्थ अनेक कुबिकल्प रूप ग्रंथ जाल रचते चले जावेंगे। जीवहिंसा, मृषा वचन, अदत्त मैथुन, अगम्य गमन, अपेयपान, अभक्ष भक्ष ऐसा कोई कुकृत्य नहीं जो इस वंश वाले नहीं करेंगे और तद्रूप ग्रंथ रचेंगे। पात्र अल्पतर कुपात्र ही प्रायः होंगे। जिनोक्त तत्व सत्य धर्म के परम द्वेषी व-नष्टकर्त्ता होयगे, प्रजागण तरणतारण इन को गुरु भाव से पूजेंगे। इन की आज्ञा शिरोधार्य करेंगे फिर जब शीतल १० मां तीर्थंकर होगा तब उनके उपदेश से कई एक भव्य जीव पुनः धर्म के श्रद्धावंत होंगे । इस प्रकार सोलमें तीर्थंकर पर्यंत जिन धर्म प्रवर्तन हो हो कर विच्छिन्न होता जावेगा । इतने में अनेक पाषंड मिथ्यात्व रूप महातिमिर भारत क्षेत्र में विस्तार पावेगा । उगणीस में बीस में तीर्थंकर के मध्य में पर्बत ब्राह्मण महाकाल असुर की सहायता से बकरा हवन कर मांस भक्षण करना ऐसा कृत्य वेद का मूल अर्थ पलटा के शुरू करेगा, बीस में तीर्थंकर के निर्वाण पीछे याज्ञवल्क्य ब्राह्मण तेरे रचे चेद को त्याग नई श्रुतियें हिंसा कारक रूप रचेगा, जिसका नाम शुक्ल यजुर्वेद रखेगा, उस के पीछे जंगल में रहनेवाले अनेक जीवों के मारने रूप अनेक ब्राह्मण वेद का नाम धरकर श्रुतियें रचेंगे उनकी रची श्रुतियों में उन २ ऋषियों का नाम रहेगा, उन सब ऋषियों के पास फिर २ के नेम तीर्थंकर के कुछ पहिले पराशर का पुत्र द्वीपायन ब्राह्मण उन हिंसाकारक मंत्रों को ताड़ पत्र पर लिखकर एकत्रित करके उसके ३ भाग करेगा ऋक् १, यजुः २ और साम ३, तबसब ब्राह्मण उसे वेद व्यास कहेंगे, पीछे नेम तीर्थंकर का उपदेश सुनकर व्यास के हृदय में सत्य हिंसा रूप - जिन धर्म की श्रद्धा उत्पन्न होगी तदनंतर कृष्ण नारायण की आज्ञानुसार गीता, भारत आदि में सात्विकी लेख भी स्वरचितः पुराणादि इतिहासों में स्थल २ में लिखेगा और किसी स्थल में पूर्व गृहीत हिंसा. जनक लेख भी लिखेगा । इस हुंडा अवसर्पिणी काल में असंयतियों की पूजा, • 'Page Navigation
1 ... 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 ... 89