________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - - Reg. No. G 50 अष्टादश शतै रम्य श्लोक संख्या प्रगीयते। लोहाचार्य की मूल रचना तो मेरे देखने में स नवैः सादरं धीरां अंगी कुर्वम् भावतः / / 105 , नहीं आई पर मनसुखलालने उसकी भाषा जिस प्रकार आजकल हमारे आचार्य और टीका 19 वीं शताब्दी में बनाई है। इनके मुनियों के पास न्याय, व्याकरण आदि को अतिरिक्त संमेत शिखर माहात्म्य लालचन्दने पढाने के लिये ब्राह्मण पंडित रहते हैं वैसे ही संवत् 1842 में हिन्दी में बनाया। संमेत दि० भट्टारकों के यहां भी ब्राह्मण विद्वान् रहा शिखर विलास केसरी-सिंहने और देवा ब्रह्मने करते थे। अधिक परिचय व सम्पर्क से उनका, बनाया है। दि० भण्डारों में इन सब हिन्दी झुकाव जैन धर्म के प्रति हो जाता था। देवदत्त रचनाओं की प्रतियां प्राप्त है, और एक-दो दीक्षित भी ऐसे ही बिद्वान् लगते हैं। रचना तो छपी हुई भी देखने को मिली थी। ___ श्री कापडियाने जिनेन्द्रभूषण के संमेत : - संमेत शिखर संबंधी कापड़िया उल्लिखित शिखरी विलास का उल्लेख किया है. संभव साहित्य के अतिरिक्त और भी कई रचनायें है वह रचना भी देवदत्त वाली हो। क्योंकि : प्राप्त है दयारूचि के संमेत शिखर रास का देवदत्तने उपरोक्त माहात्म्य जिनेन्द्रभषण के उन्होंने उल्लेख किया है. उसके रचित संमेत सम्पर्क में रहते हुयें बनाया है। श्री कापडियाने शिखर पूजा भी प्राप्त है। और भी कई रचनायें टिप्पणीमें लोहाचार्य और गंगादास के संमेत हमारे संग्रह में है जिन पर भी कभी प्रकाश सिहरो विलास को प्राकृत की रचना मानी है" डाला जायेगा। संमेत शिखर की यात्रा को , पर वह प्राकृत में शायद ही हो। गंगादास... C विवरण तो मैंने अनेकान्त में कई वर्ष पूर्व रचित संमेताचल पूजा तो संस्कृतमें प्राप्त है। - मैंने प्रकाशित किया था। " ... ..... पुस्ता पश्यिय .., (1) विसश-श्रीमह-हेभन्यायाय वियित: अभियान तिमलिश: વિવેચનકાર–આચાર્ય શ્રી વિજયકસ્તૂરસરિઝ. પ્રાપ્તિસ્થાન-સરસ્વતી પુસ્તક ભંડાર, ઠે. હાથીખાના, २तनपाण-अभहावा. : આ ગ્રંથના ભાષાંતરમાં ઘણા ગ્રંથના તેમ જ વ્યાકરણના અને ખ્યાલમાં રાખી કેટલાક પર્યાય-વાચક શબ્દોના ગુજરાતી ભાષામાં સહેલાઈથી સમજી શકાય તેવી રીતે અર્થો આપ્યાં છે. સંસ્કૃતના અભ્યાસીઓને આ ગ્રંથ ખૂબ ઉપયોગી થશે. વળી ગુજરાતી શબ્દો ઉપરથી સંસ્કૃત શબ્દ नवा भाटे गुजराती अनुभवि मापेक्ष छ.. .. . . ... मत 3. 10-00 (2) જીવન જાગૃતિ (કલ્યાણના ૨૧માં વર્ષની ભેટ). વ્યાખ્યાનકાર-પૂ. મુ. શ્રી રાજેન્દ્રવિજયજી भावारा प्रतिस्थान:-श्री या प्राशन माहिर ट्रस्ट, या शहर (सौराष्ट्र) भत 31.2-00 " "અમદાવાદ ખાતે ચિત્ય પરિપાટીને શુભ પ્રસંગે આપેલ પંદર જાહેર પ્રવચનનું મનનીય અને સારભૂત" અવતરણ આ પુસ્તકમાં પ્રસિદ્ધ થયેલ છે. વ્યાખ્યાનની ભાષા રોલી એકંદર આકર્ષક છે. વર્તમાન પ્રવાહના અનેક પ્રશ્નોને નજર સમક્ષ રાખીને મુંઝાતા માનવોને ધર્મના કલ્યાણકારી માંગે વાળવા આ પ્રવચનોમાં સુંદર વિષય ચર્ચાયા છે. . ( અનુસંધાને ટાઈટલ પેજ 2 જ ઉપર) પ્રકાશક : દીપચંદ જીવણલાલ શાહ, શ્રી જૈન ધર્મ પ્રસારક સભા-ભાવનગર : -भुद्र:भीरधाम क्षयं शाई, साधना भुशालय-भावनगर For Private And Personal Use Only