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(३२)
भाभप्राश
[भागस
पति में लिखे गए हैं। इस लिए 'अनुभव विलास' यह नाम केवल पदसंग्रह का रखा गया था या समस्त रचनाओं के संग्रह का, यह अभी निश्चय नहीं कहा जा सकता । 'अनुभव बिलास' की कोई पूरी प्रति मिलेगी तभी इसकी निर्णय हो सकेगा।
__ अब इस प्रति में प्रकाशित बहप्तरी पदों के अतिरिक्त जो तीन अप्रकाशित पद प्राप्त हुए हैं उन्हें नीचे दिया जा रहा है:
(१) राग-काफी रहत प्रेम रस प्यागी हो, अभिअंतर मति मेरी । रहत० ॥ चातुक घन जो चकोर चंद भृग, सुणत नाद रस थागी । प्राण जाय पिग प्रीततजत नहींमछन्ली जल अनुरागी हो । अ०१॥ मधुकर मालति हंस सरोवर, कोकिल कली का त्यागी।
और और रति पावति नाही, विनसत संग सोभागी हो । अ० २॥ चिदानन्द मकड़ी के तार सम, उलट सुलट लव लागी । सहज सुभाव सुधारस चाख्यो, मोहनींद थी जागी हो । अ० ३॥
(२) राग-विभाम निदिया वैरण भोरी भईरी।
आय पिया पाछै गए आली, मैं तिण अवसर सोय रहो री ।। नि०१॥ इण दूती के कारण प्यारी, विर था सगरी रैन गई री। कोउ वसीठी आण मिलावै, ग्राहक होय तो बेचूं सही री । निं० २॥ सरघा कहत गई कहा सोचत, ये री अली अब राख रही री। चिदानंद रे वचन विचारी, मगन भई आणंद लही री ।। नि. ३॥
(३) राग-आसावरी अचल अकल अविकारा, अवधू ऐस्या रूपा तिहारा । अ०॥ वचन अगोचर वचन करी ते, मुख थी कहो न जावै । केवल ज्ञान बिना पूरवधर, परण भेदन पावै ।। अ०१॥ वरणा बरण विभेद नहीं जहाँ, विधि निषेध नहीं कोई। चरम . अगोचर केवल गोचर, द्वेय पदारथ सोई ॥ अ० २।।
अस्ति कहत नहीं कछू देखत, नास्तिक कह्या न जावै । - अवक्तव्य तीजापिण भांगा, तेहू एक , न पावै ।। अ० ३॥ * विवहारे बंधण वह दरसत, निचे तो नहिं कोई । इण विध लक्ष करें निज सत्ता, अनुभव दृष्टि जोई ॥अ०४॥ स्यादवाद साधत ते ज्ञानी, गहत एकान्त अज्ञानी । .. 'चिदानंद' निरपक्षभावना, निहचे । मोक्ष निसानी ॥ अ. ६॥
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