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श्रीयशोविजय जैन ग्रंथमाला
हेरीसरोड - भावनगर
मारे त्यांथी मलतां पूर्व ने अलभ्य पुस्तको जल्दी मंगावी ल्यो.
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१ विशेषावश्यकभाष्य-सटीक
जैन सिद्धान्तनो खजानो । भंडारो ने पुस्तकालयोमां तो एक एक कापी राखीज जोइये | थोड़ा वखतमां संभव छे अमारे सो रुपिया किमत करवी पड़े । माटे चेत ठीक छे ।
४०-०-०
२ श्रभिधान चिंतामणि- कोश
कलिकाल सर्वज्ञ प्रभुश्री हेमचन्द्राचार्यने कोण नथी जायतुं ? तेमनोज आ स्वोपज्ञ टीकावालो कोश | थोडं घणुं संस्कृत जाणनार तमामने चल्के साक्षर मात्र उपयोगी । कारण के अंतम शब्दोनी अनुक्रमणिका एवी सुंदर रीते
पीछे के कोई पण शब्द कोई पण माणस झटकाढ़ी शके । वेभागो-पाका बाइडिंग साथे ( प्रथम भागनी किं० ४-०-० बीजानी ३-०-० ) ७-०-०
३ जैनतर्क वार्त्तिक -शान्त्याचार्यनी टीका युक्त
एक जैनेतर क्लर या ग्रंथनी उपयोगिता पर मुग्ध थयो । तेणे छपान्यो अने जैनेतरोमां प्रचार पण कर्यो ! जैनो दजु पोताना था श्रत्युपयोगी ग्रंथने जोवा पण नथी पायान्यायना क्षेत्रमां प्रवेश करवा माटे तो आ ग्रंथ सुंदर दरवाजा रूप छे । थोड़ी को अमारी पासे छे ।
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४ उत्तराध्ययन सूत्र भा० १ लो, कमलसंयमी टोका
उत्तम प्रकारना लेजर सीत्तर रतली कागलो ऊपर निर्णयसागर प्रेसमां, सारा म्होटा टाईप पत्राकारे छपाववामां आवे छे । खप पुरती नकलो छपावी छे । नीलोपा
परे
? तेनी
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