Book Title: Jain Dharm Prakash 1923 Pustak 039 Ank 12
Author(s): Jain Dharm Prasarak Sabha
Publisher: Jain Dharm Prasarak Sabha

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Page 43
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीयशोविजय जैन ग्रंथमाला हेरीसरोड - भावनगर मारे त्यांथी मलतां पूर्व ने अलभ्य पुस्तको जल्दी मंगावी ल्यो. acce १ विशेषावश्यकभाष्य-सटीक जैन सिद्धान्तनो खजानो । भंडारो ने पुस्तकालयोमां तो एक एक कापी राखीज जोइये | थोड़ा वखतमां संभव छे अमारे सो रुपिया किमत करवी पड़े । माटे चेत ठीक छे । ४०-०-० २ श्रभिधान चिंतामणि- कोश कलिकाल सर्वज्ञ प्रभुश्री हेमचन्द्राचार्यने कोण नथी जायतुं ? तेमनोज आ स्वोपज्ञ टीकावालो कोश | थोडं घणुं संस्कृत जाणनार तमामने चल्के साक्षर मात्र उपयोगी । कारण के अंतम शब्दोनी अनुक्रमणिका एवी सुंदर रीते पीछे के कोई पण शब्द कोई पण माणस झटकाढ़ी शके । वेभागो-पाका बाइडिंग साथे ( प्रथम भागनी किं० ४-०-० बीजानी ३-०-० ) ७-०-० ३ जैनतर्क वार्त्तिक -शान्त्याचार्यनी टीका युक्त एक जैनेतर क्लर या ग्रंथनी उपयोगिता पर मुग्ध थयो । तेणे छपान्यो अने जैनेतरोमां प्रचार पण कर्यो ! जैनो दजु पोताना था श्रत्युपयोगी ग्रंथने जोवा पण नथी पायान्यायना क्षेत्रमां प्रवेश करवा माटे तो आ ग्रंथ सुंदर दरवाजा रूप छे । थोड़ी को अमारी पासे छे । 2-628 ४ उत्तराध्ययन सूत्र भा० १ लो, कमलसंयमी टोका उत्तम प्रकारना लेजर सीत्तर रतली कागलो ऊपर निर्णयसागर प्रेसमां, सारा म्होटा टाईप पत्राकारे छपाववामां आवे छे । खप पुरती नकलो छपावी छे । नीलोपा परे ? तेनी । For Private And Personal Use Only युक्त

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