Book Title: Jain Darshan me Samyaktva ka Swarup
Author(s): Surekhashreeji
Publisher: Vichakshan Smruti Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 11
________________ आमख भारत जैन कोकिला प्रवर्तिनी पूज्या साध्वी श्री विचक्षण श्री जी आधुनिक युग की एक महान् समता-साधिका हुई हैं। उन्होंने अपने जीवन एवं संयम-साधना से जनमानस को गहराई तक प्रभावित किया । फलस्वरूप पार्थिव रूप में उनके न रहने पर भी उनके समता-संदेश को उनकी. शिष्या-प्रशिष्यायें दीपशिखा की भांति जाज्वल्यमान बनाये हुए हैं । साध्वी सुरेखा श्री जी उन्हीं की प्रशिष्य-परम्परा में उज्जवल नक्षत्र की भांति ज्ञान साधना में दैदीप्यमान हैं । राजस्थान विश्वविद्यालय से. पी-एच.डी. के लिए स्वीकृत प्रस्तुत शोधप्रबंध जैन दर्शन में सम्यक्त्व का स्वरूप साध्वी श्री की ज्ञान-साधना का नवनीत है । जैन दर्शन ही नहीं, अन्य सभी भारतीय दर्शनों में सम्यक्त्व को किसी न किसी रूप में अध्यात्म साधना का द्वार प्रतिपादित किया है । सम्यक्त्व ही जीवन दृष्टि है। उसके अभाव में जीवन, जीवन नहीं, मात्र भव-प्रपंच बना रहता है । मानव जीवन की दुर्लभता का बोध सम्यक्त्व पर ही निर्भर है। सम्यक्त्व तब प्रगट होता है, जब जड़-चेतन का भेद अनुभूति के स्तर पर अनुभव में उतरता है । यह अनुभव मोहाविष्ट जीव की जड़ता को तोड़कर उसमें चिन्मयता प्रगटाता है । सम्यक् दर्शन, श्रद्धा, विश्वास, प्रतीति, रूचि आदि इसी के पर्याय हैं। ___ आज के आस्थाहीन, कुंठाग्रस्त, भयत्रस्त युग में जीवन-आस्था की बड़ी आवश्यकता है। मोह-जड़ित चेतना-भोग-भूमि से ऊपर उठकर आत्म योग में स्थिर हो, वह परमात्म-लीन हो, इसके लिए सम्यक् श्रद्धा और आत्म-दर्शन की बड़ी आवश्यकता है । ___बढ़ते हुए भौतिक ज्ञान-विज्ञान ने आज जगत् के रहस्यों को जानने-परखने में आशातीत प्रगति ओर अद्भुत क्रांति की है, पर मानव-मन के अन्तर रहस्य अब भी उद्घाटित नहीं हो पाये हैं । आज ज्ञान का विस्फोट अहम् की चरम सीमा पर पहुँच गया है । जब तक ब्रह्म के साथ उसका तादात्म्य नहीं होता, ज्ञान कल्याणकारी और

Loading...

Page Navigation
1 ... 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 ... 306