Book Title: Jain Darshan me Mithyatva aur Samyaktva Ek Tulnatmaka Vivechan
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Z_Jain_Divakar_Smruti_Granth_012021.pdf
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|| श्री जैन दिवाकर-म्मृति-ग्रन्थ ।
चिन्तन के विविध बिन्दु : ५४४ :
प्रभावना के आठ प्रकार माने गये हैं
१. प्रवचन, २. धर्म, ३. वाद, ४. नैमित्तिक ५. तप, ६. विद्या, ७. प्रसिद्ध व्रत ग्रहण करना और ८. कवित्वशक्ति । सम्यग्दर्शन की साधना के ६ स्थान
जिस प्रकार बौद्धदर्शन में दुःख है. दुःख का कारण है, दुःख से निवृत्ति हो सकती है, और दुःख निवृत्ति का मार्ग है, इन चार आर्यसत्यों की स्वीकृति सम्यग्दृष्टित्व है उसी प्रकार जैन साधना के अनुसार निम्न षट्स्थानकों" (छः बातों) की स्वीकृति सम्यग्दृष्टित्व है
१. आत्मा है २. आत्मा नित्य है ३. आत्मा अपने कर्मों का कर्ता है ४. आत्मा कृतकर्मों के फल का भोक्ता है ५. आत्मा मुक्ति प्राप्त कर सकता है ६. मुक्ति का उपाय या मार्ग है ।
जैन तत्त्व विचारणा के अनुसार उपरोक्त षट्स्थानकों पर दृढ़ प्रतीति सम्यग्दर्शन की साधना का आवश्यक अंग है । दृष्टिकोण की विशुद्धता एवं सदाचरण दोनों ही इन पर निर्भर हैं। यह षट्स्थानक जैन नैतिकता के केन्द्र बिन्दु हैं। बौद्ध-वर्शन में सम्यक्-दर्शन का स्वरूप
जैसा कि हमने पूर्व में देखा बौद्ध परम्परा में जैन-परम्परा के सम्यक्दर्शन के स्थान पर सम्यक समाधि, श्रद्धा या चित्त का विवेचन उपलब्ध होता है। बुद्ध ने अपने विविध साधना मार्ग में कहीं शील, समाधि और प्रज्ञा, कहीं शील, चित्त और प्रज्ञा और कहीं शील, श्रद्धा और प्रज्ञा का विवेचन किया है । इस आधार पर हम देखते हैं कि बौद्ध-परम्परा में समाधि, चित्त और श्रद्धा का प्रयोग सामान्यतया एक ही अर्थ में हुआ है। वस्तुतः श्रद्धा चित्त-विकल्प की शून्यता की ओर ही ले जाती है। श्रद्धा के उत्पन्न हो जाने पर विकल्प समाप्त हो जाते हैं। उसी प्रकार समाधि की अवस्था में भी चित्त-विकल्पों की शून्यता होती है, अतः दोनों को एक ही माना जा सकता है। श्रद्धा और समाधि दोनों ही चित्त की अवस्थाएँ हैं अतः उनके स्थान पर चित्त का प्रयोग भी किया गया है। क्योंकि चित्त की एकाग्रता ही समाधि है और चित्त की भावपूर्ण अवस्था ही श्रद्धा है। अतः चित्त, समाधि और श्रद्धा एक ही अर्थ की अभिव्यक्ति करते हैं। यद्यपि अपेक्षाभेद से इनके अर्थों में भिन्नता भी रही हई है। श्रद्धा बुद्ध, संघ और धर्म के प्रति अनन्य निष्ठा है तो समाधि चित्त की शांत अवस्था है।
बौद्ध परम्परा में सम्यक्दर्शन का अर्थ साम्य बहुत कुछ सम्यक्दृष्टि से है। जिस प्रकार जैन-दर्शन में सम्यकदर्शन तत्त्वश्रद्धा है उसी प्रकार बौद्धदर्शन में सम्यकदृष्टि चार आर्यसत्यों के
७१ आत्मा छे, ते नित्य छ, छे कर्ता निजकर्म ।
छे भोक्ता बली मोक्ष छे, मोक्ष उपाय सुधर्म ॥
-आत्मसिद्धि शास्त्र (राजचन्दभाई)
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