Book Title: Jain Darshan me Dhwani ka Swarup
Author(s): Nandighoshvijay
Publisher: Z_Jain_Dharm_Vigyan_ki_Kasoti_par_002549.pdf

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Page 4
________________ लिपि बद्ध किया गया ध्वनि का स्वरूप । प्राचीन काल के महापुरुषों ने ऐसे | विशिष्ट मंत्रों के निश्चित अर्थ अर्थात् विषयों को अपनी अतीन्द्रिय ज्ञानदृष्टि से देखे हैं और अतएव शब्द/मंत्र के ऐसे विशिष्ट रंगों को देखने वाले श्री अशोक कुमार दत्त अपने प्राचीन ऋषि-मुनिओं के लिये " मंत्रार्थदृष्टा "| शब्द का प्रयोग करते हैं । मंत्रोच्चारण के रहस्य बताते हुए श्री अशोक कुमार दत्त अपने अनुभव का वर्णन करते हुए कहते हैं कि : "मंत्रोच्चारण में व भगवद नाम के उच्चारण करते समय भूरे व सफेद रंग कण समूह देखे जाते हैं और उससे प्राणीओं का शरीर पुष्ट होता है । उसके साथ-साथ मंत्रोच्चारण से सूक्ष्म शरीर प्रकाशपुंज की चमक व तेजस्विता बढ जाती है । अतएव भगवदनाम जप व मंत्रोच्चारण का विधान पूर्णतः वैज्ञानिक है उसका मुझे भान हुआ ।" लेफ. कर्नल सी. सी. बक्षी अपनी " वैश्विक चेतना " किताब में मंत्रजाप के बारे में लिखते हैं कि प्रत्येक आवाज, ध्वनि या शब्द , उसका मानसिक या वाचिक उच्चारण होने पर उस समय निश्चित रूप में स्पंदन उत्पन्न करते हैं । जब हम विचार करते हैं उस समय भी (अपने मस्तिष्क में| शब्द , ध्वनि की अस्पष्ट उत्पत्ति होती है जिसे संस्कृत व्याकरण के निष्णात या वैयाकरण स्फोट कहते हैं और) उस अक्षरों की निश्चित आकृति अपने मन के समक्ष बन जाती है । वर्तमान में पश्चिम में मंत्र, यंत्र व तंत्र के बारे में विशिष्ट कहा जाय ऐसा अनुसंधान चलता है और विभिन्न किताबों द्वारा मंत्र, यंत्र व तंत्र के रहस्य वैज्ञानिक पद्धति से प्रस्तुत किये जाते है | यंत्र वस्तुतः मंत्र में स्थित अक्षरों के संयोजन से बने हुए शब्द का आकृति स्वरूप है । थोड़े ही साल पहले इंग्लैण्ड से प्रकाशित एक अंग्रेजी किताब Yantra देखने को मिली । ( लेखक : मधु खन्ना, प्रकाशक : Thames Hudson) उसमें रोनाल्ड नामेथ (Ronald Nameth) नाम के एक विज्ञानी ने टोनोस्कॉप (Tonoscope) नामक एक वैज्ञानिक उपकरण से इलेक्ट्रोनिक वाईब्रेशन फिल्ड (Electronic vibration [field) में से श्रीसुक्त के ध्वनि को प्रसारित किया और उस ध्वनि का श्रीयंत्र की आकृति में रूपांतर हो गया । उसका स्थिर चित्र भी दिया गया है । इसका अर्थ यह हुआ कि श्रीयंत्र श्रीसुक्त का आकृति स्वरूप है । जिस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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