Book Title: Jain Darshan me Dhwani ka Swarup Author(s): Nandighoshvijay Publisher: Z_Jain_Dharm_Vigyan_ki_Kasoti_par_002549.pdf View full book textPage 5
________________ तरह ग्रामोफोन की रेकॉर्ड में ध्वनि को अंकित किया जाता है ठीक उसी तरह किसी भी मंत्र के ध्वनि को उसी साधन में से प्रसारित करने पर उसका आकृति स्वरूप प्राप्त हो सकता है / साथ-साथ कुछेक लोगों का मानना है कि जैसे ग्रामोफोन की रेकॉर्ड में से पुनः ध्वनि की प्राप्ति हो सकती है वैसे यंत्राकृति में से पुनः मंत्र की प्राप्ति हो सकती है / तथा जैसे आधुनिक भौतिकी में शक्ति का पुद्गल (द्रव्य कण) में और पुद्गल (द्रव्य कण) का शक्ति में परिवर्तन होता है वैसे ही मंत्र का यंत्र में और यंत्र का मंत्र में परिवर्तन हो सकता है / अतएव यंत्र के स्थान पर मंत्र और मंत्र के स्थान पर यंत्र रखा जा सकता है / ___प्राचीन काल के महापुरुष स्वयं जिन मंत्रों की आराधना करते होंगे. उन मंत्रों का आकृति स्वरूप अर्थात् यंत्रों को उन्हों ने स्वयं अपनी दिव्य दृष्टि से देखा होगा या तो उन मंत्रों के अधिष्ठायक देवों ने प्रत्यक्ष / प्रसन्न होकर उन मंत्रों का यंत्र स्वरूप उन साधकों को बताया होगा, बाद में उन साधकों ने उसी स्वरूप को भोजपत्र या ताडपत्र पर आलेखित किया होगा और वह परंपरा से अपने पास आया है | __वस्तुतः यंत्र एक प्रकार का भिन्न भिन्न भौमितिक आकृतियों का संयोजन ही है / जैसे-जैसे भिन्न-भिन्न व्यंजन व स्वर के संयोजन से मंत्र निष्पन्न होता है वैसे-वैसे भिन्न-भिन्न प्रकार की भौमितिक आकृतियों के संयोजन से यंत्र बनते हैं। __ संक्षेप में, जिस तरह मंत्रजाप से इष्टफल सिद्धि होती है वैसे ही यंत्र भी इष्ट फल की सिद्धि कर सकता है क्योंकि वह भी मंत्र का ही स्वरूप है / यह है ध्वनि की अद्भुत शक्ति / 42 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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