Book Title: Jain Darshan me Ajiv Tattva Author(s): Pushkar Muni Publisher: Z_Anandrushi_Abhinandan_Granth_012013.pdf View full book textPage 4
________________ श्री आनन्दत्र ग्रन्थ २४२ धर्म और दर्शन CHAPORID च अणुओं के संघात को स्कन्ध कहते हैं । स्कंध के जो छह भेद बताए हैं उनका स्पष्टीकरण इस प्रकार है श्री आनन्द अन्थ (१) स्थूल - स्थूल - ठोस पदार्थों को इस वर्ग में रखा गया है। जैसे लकड़ी, पत्थर, धातुएं आदि । स्थूल - इसमें द्रवणशील पदार्थ आते हैं । जैसे जल, केरोसिन, दूध आदि । (३) सूक्ष्म - स्थूल - इसमें वायु आती है । (४) स्थूल सूक्ष्म -- इसमें प्रकाश, ऊर्जा शक्ति का समावेश किया है। जैसे प्रकाश, छाया, तम । (५) सूक्ष्म - हमारे विचारों और भावों का प्रभाव इन पर पड़ता है । इनका प्रभाव अन्य पुद्गलों तथा हमारी आत्मा पर पड़ता है । जैसे कर्म वर्गणा । (६) सूक्ष्म सूक्ष्म - अतिसूक्ष्म अणु का समावेश होता है। विद्युतणु, विद्युत्कण आदि । जैन दार्शनिकों ने प्रकृति और ऊर्जा को पुद्गल पर्याय माना है। विज्ञान भी यही मानता है । छाया, तम, शब्द आदि पुद्गल के पर्याय हैं । १६ अन्धकार और प्रकाश का लक्षण अभावात्मक न मानकर दृष्टि- प्रतिबंधकारक व विरोधी माना है । २० आधुनिक विज्ञान भी प्रकाश के अभाव रूप को अन्धकार नहीं मानता । अन्धकार पुद्गल की पर्याय है । प्रकाश पुद्गल से पृथक उसका अस्तित्व है । छाया पुद्गल की ही एक पर्याय है। प्रकाश का निमित्त पाकर छाया होती है । प्रकाश को आप और उद्योत के रूप में दो भागों में विभक्त किया है । सूर्य का चमचमाता उष्ण प्रकाश 'आप' है और चन्द्रमा, जुगुनू आदि का शीत प्रकाश 'उद्योत' है । शब्द भी पौद्गलिक है । इस विराट् विश्व में जितने भी पुद्गल हैं वे सभी स्निग्ध और रूक्ष गुणों से युक्त परमाओं के बंध से पैदा होते हैं। सभी पुद्गल का रचनातत्त्व एक ही प्रकार का होता है । रचना तत्व की दृष्टि से सभी पुद्गल एक ही प्रकार के हैं । २१ पुद्गलद्रव्य, स्कन्ध में अणु चालित क्रियाशील होते हैं । २२ इस क्रिया का प्ररूपण दो विभागों में विभक्त किया जा सकता है (१) विस्रसा क्रिया और (२) प्रायोगिक क्रिया । विस्रसा क्रिया प्राकृतिक होती है और प्रयोगनिमित्ता क्रिया बाह्य निमित्त से पैदा होती है । Jain Education International परमाणु और स्कंध के बंध तीन प्रक्रियाओं से उत्पन्न होते हैं (१) भेद, (२) संघात, (३) भेद-संघात । भेद का अर्थ है स्कंध में से कुछ परमाणु विघटित हों और दूसरे में मिल जायें । संघात का अर्थ है एक स्कन्ध के कुछ अणु दूसरे स्कन्ध के कुछ अणुओं के साथ संघटित हो । भेदसंघात का अर्थ है भेद और संघात प्रक्रिया का एक साथ होना । एक स्कन्ध के कुछ अणु दूसरे से मिलकर दोनों स्कंधों से समान रूप से सम्बद्ध रहें । संघात में संघटित होकर समान रूप से दोनों स्कंधों से सम्बद्ध रहने वाले अणु किसी भी स्कन्ध से विच्छिन्न नहीं होते । भेद-संघात में विघटित होकर संघटित रूप से रहते हैं । १६ सद्दो बंधो 'दब्वस्स पज्जाया । — द्रव्य संग्रह २० तमो दृष्टिः प्रतिबंधकारणं प्रकाश विरोधी । —सर्वार्थसिद्धि २१ ( क ) तत्त्वार्थ सूत्र ५।२६-३३ (ख) सर्वार्थ सिद्धि अ. ५, सूत्र २४ २२ गोम्मटसार गा० २६२ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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