Book Title: Jain Darshan aur Sanskruti Parishad
Author(s): Mohanlal Banthia
Publisher: Mohanlal Banthiya

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Page 5
________________ [२] तदनन्तर भी मोहनलाल जी बांठिया ने इस अवसर पर आए लगभग २५ स्थानों के जैन व जेनेतर विद्वानों के शुभ कामना संदेश पढ़कर सुनाये। तत्पश्चात् भी बगनलाल शास्त्री ने दर्शन परिषद् के प्रति शुभकामना प्रकट की । नालन्दा तथा वैशाली विद्यापीठों के डायरेक्टर डा० नथमल जी टांटिया डी० लिट० ने जैनों के दार्शनिक इतिहास पर दीर्घ व गम्भीर विवेचनात्मक भाषण दिया जिसकी जैन व अजैन सभी विद्वानों ने भूरि-भूरि प्रशंसा की। सुनिश्री नगराज के तात्विक प्रवचन के पश्चात् आचार्य प्रबर ने अपने प्रवचन में कहा कि अणुव्रत आन्दोलन के १५ वें वार्षिक समारोह के अनन्तर ही दर्शन परिषद् का यह कार्यक्रम मानस सम्बन्धी अनेक आवश्यक व महत्वपूर्ण समस्याओं का समाधान प्रस्तुत करता है। जीवन में संयम किस प्रकार अपनाया जाय या स्वयं को संयमित किस प्रकार बनाया जाय इसे जानने में अणुव्रत आन्दोलन सक्षम बनाता है तो दर्शन परिषद् का कार्यक्रम संयम को स्थिर रखने के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डालता है, और इसलिए यह रुचिकर भी है। कुछ लोगों की धारणा में दर्शन का विषय सामान्य जनता की अभिरुचि का नहीं है। पर मेरे विचार में दर्शन को दुष्पाच्य आज बना दिया गया है जिससे वह साधारण जनता की रुचि का विषय नहीं रह पाया है। आज आवश्यकता है कि इसे अधिक से अधिक सुपाच्य बना कर जनसाधारण के समक्ष प्रस्तुत किया जाय । इस प्रकार की मेरी आकांक्षा कई वर्षों से थी । उसीके परिणाम स्वरूप गतवर्ष लाइन से यह कार्य प्रारम्भ हुआ जिसमें आंशिक सफलता मिली है। मुझे पूरा विश्वास है कि इसके द्वारा विद्यार्थियों और विद्वानों में एक विशेष अभिरुचि उत्पन्न की जा सकेगी । आचार्य प्रवर ने अपने भाषण में आगे बोलते हुए कहा -दर्शन का तात्पर्य है दृष्टि । आर्थिक, सामाजिक या राजनैतिक किसी भी क्षेत्र में तत्तद्विषयक दृष्टि के बिना सफलता संदिग्ध रहती है तो धार्मिक बिना सफल होने की कल्पना कैसे की जाय ? क्षेत्र में इसके दृष्टि-दृष्टि में भी सिद्धान्त की भाषा में 'छडाणवड़िया' अन्तर हैअर्थात् एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति की दृष्टि में अनन्त गुण तारतम्य रह सकता है, इसलिए जैन तीर्थंकरों ने हमें सूक्ष्म दृष्टि देते हुए कहा - सबसे पहिले स्वयं को देखो। जो एक को देख लेता है वह सबको देख लेता है ।

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