Book Title: Jain Darshan Ke Pariprekshya Me Aadipuran
Author(s): Supriya Sadhvi
Publisher: Bharatiya Vidya Prakashan

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Page 7
________________ मॅगलआशीर्वाद उग्रतपस्विनी तपसिद्ध योगिनी सरलात्मा महासती श्री सुमित्रा जी म., दीप्ततपस्विनी तपसिद्ध योगिनी महासती श्री सन्तोष जी म. की प्रशिष्या परम विदुषी साध्वी डॉ. श्री सुप्रिया जी म. अपना शोध-ग्रन्थ प्रकाशन करावाने जा रही हैं, यह जानकर अतिहर्षानुभूति हुई। साध्वी जी ने “जैन दर्शन के परिप्रेक्ष्य में आदिपुराण-एक समीक्षात्मक अध्ययन" जैसे जटिल और श्रमसाध्य विषय को अपने शोध-प्रबन्ध के लिए चुना। पुराण का नाम आते ही सनातम संस्कृति से जुड़े मोटे-मोटे ग्रन्थों की तस्वीर नज़रों में आती है। अधिकतर जैन धर्मावलम्बियों को अभी यह नहीं पता कि यह पुराणों का सम्बन्ध जैन दर्शन से है। पुराणों में जैन धर्म का मर्म, संस्कृति और समाज का इतिहास संकलित है। साध्वी जी ने इस लुप्त से विषय को अपनी लेखनी से छूकर पुन:जीवित कर दिया है। परम विदुषी साध्वी जी की लग्न और परिश्रम का सजीव प्रमाण उनके शोध-ग्रन्थ में परिलक्षित हो रहा है, साध्वी जी ने अपने संयम-साधना के स्वर्णिम क्षणों को व्यर्थ न गँवाकर उनका सदुपयोग किया है। _साध्वी जी इसी प्रकार अपने जीवन में ज्ञानाराधन पथ पर निर्विघ्न । अप्रमत्त भाव से बढ़ती रहें। यही मेरा हार्दिक मंगल आशीर्वाद है। मनीषिविद्वान इसे अवश्य ही पसन्द करेंगे तथा शोध-मुमुक्षुओं के लिए भी यह बड़ा उपादेय रहेगा। - अमर मुनि

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