Book Title: Jain Darshan Author(s): Nyayavijay, Publisher: Shardaben Chimanbhai Educational Research Centre View full book textPage 4
________________ प्रकाशकीय न्यायविशारद, न्यायतीर्थ स्व. मुनि श्री न्यायविजयजी द्वारा लिखित पुस्तक 'जैन दर्शन' का परिवर्तित संस्करण प्रकाशित करते हुए हमें अत्यन्त प्रसन्नता हो रही है। कई साल पूर्व महाराजश्री ने यह कृति मूलरूप से गुजराती भाषा में लिखी थी, जिसके १३ संस्करण छपें । यह प्रस्तुत ग्रन्थ की महत्ता के द्योतक है । श्री हेमचन्द्राचार्य जैन सभा, पाटण (गुजरात) की ओर से हिन्दी में भी अद्यावधि ३ संस्करण प्रकाशित हो चूके है । तथापि वर्तमान में प्रस्तुत ग्रंथ की हिन्दी आवृत्ति अनुपलब्ध है। हिन्दी भाषी जैन एवं जिज्ञासुओं के लिए यह एक बहु मूल्य ग्रंथ है। जिसके पुनः प्रकाशन के लिए महत्तरा मृगावती श्रीजी म. सा. की विनीत एवं वात्सल्य हृदया शिष्या श्री सुव्रताश्रीजी ने हमें बार बार प्रेरणा की थी किन्तु संयोग वशात् ग्रंथ के प्रकाशन कार्य में विलंब होता रहा अंत में हेमचन्द्राचार्य जैन सभा पाट के प्रमुख श्री प्रतापभाई शेठ के साथ बात हुई और पुनः प्रकाशन की योजना बनाई उन्होंने तुरंत ही ग्रंथ के पुनः प्रकाशन की योजना संमति प्रदान की, जिससे यह ग्रंथ प्रकाशन करने में हमें सरल हई और आज यह कार्य संपन्न हो रहा है । इसके लिए हम श्री प्रतापभाई के अत्यंत आभारी हैं । प्रस्तुत ग्रंथ का अंग्रेजी संस्करण भी कुछ बरस पूर्व प्रकाशित हुआ और विद्वद्समाज में समाहत बना । अनुवाद की भाषा में बहुत मामूली परिवर्तन के अलावा उसे यथावत् रखा गया है। हिन्दी भाषी विशाल जनसमूह के लिए यह ग्रंथ जैन धर्म के बारे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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