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जिनवाणी- जैनागम-साहित्य विशेषाङ्क श्रुतपुरुष की कल्पना आगमों के वर्गीकरण की दृष्टि से एक अतीव सुन्दर कल्पना है। प्राचीन ज्ञान भण्डारों में श्रुतपुरुष के हस्तरचित अनेक कल्पना चित्र मिलते हैं। द्वाटश उपांगों की रचना होने के पश्चात् श्रुत पुरुष के प्रत्येक अंग के साथ एक- एक उपांग की भी कल्पना की गई है, क्योंकि अंगों में कहे हुए अर्थों का स्पष्ट बोध कराने वाले उपांग सूत्र हैं। किस अंग का उपांग कौन है, यह इस प्रकार है-. अंग
उपांग आचारांग
ओपपातिक सूत्रकृत
राजप्रश्नीय स्थानांग
जीवाभिगम समवाय
प्रज्ञापना भगवती
जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति ज्ञाताधर्मकथा
सूर्यप्रज्ञप्ति उपासकदशा
चन्द्र प्रज्ञप्ति अन्नकृतदशा
निरयावलिया-कल्पिका अनुत्तरोगपातिक दशा कल्पावतंसिका प्रश्नव्याकरण
पुष्पिका विपाक
पुष्प यूलिका दृष्टिवाद
वृष्णिदशा श्रुत पुरुष की तरह वैदिक वाङ्मय में भी वेद पुरुष को कल्पना की गई है। उसके अनुसार छन्द पैर हैं, कल्प हाथ हैं, ज्योतिष नेत्र हैं, निरुक्त श्रोत्र हैं, शिक्षा नासिका है और व्याकरण मुख है। नि!हण आगम
जैन आगमों की रचनाएँ दो प्रकार से हुई हैं- १. कृत २. नियूहण। जिन आगमों का निर्माण स्वतन्त्र रूप से हुआ है वे आगम 'कृन' कहलाते हैं। जैसे गणधरों के द्वारा द्वादशांगी को रचना की गई है और भिन्न भिन्न स्थविरों के द्वारा 'उपांग' साहित्य का निर्माण किया गया है, वे सब ‘कृत' आगम हैं। नि!हण आगम ये माने गये हैं१. आचारचूला
२. टशवैकालिक ३. निशीथ
४. दशाश्रुतस्कन्ध ५.बृहत्कल्प
६. व्यवहार ७. उत्तराध्ययन का परीषह अध्ययन ।
_ 'आचारचूला' चतुर्दशपूर्वी भद्रबाहु के द्वारा नि!हण की गई है, यह बात आज अन्वेषण के द्वारा स्पष्ट हो चुकी है। 'आचारांग' से 'आचार खुला की रचनाशैली सर्वथा पृथक है। उसकी रचना 'आचारांग' के बाद हुई है। आचारांग--नियुक्तिकार ने उसको स्थविर कृत माना है। स्थविर का अर्थ चूर्णिकार ने गणधर किया है और वृत्तिकार ने चतुर्दश पूर्व किया है, किन्तु
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