Book Title: Jain Agam Sahitya Ek Drushitpat
Author(s): Devendramuni
Publisher: Z_Jinavani_003218.pdf

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Page 10
________________ | जैन आगम-साहित्य : एक दृष्टिपात। 15 में प्रायश्चित्त विधि का निरूपण है, उससे चारित्र की विशद्धि होनी है एतदर्थ यह श्रुत उत्तम माना गया है। श्रमण जीवन की साधना का सवांगीण विवेचन छेद सूत्रों में ही उपलब्ध होता है। साधक की क्या मर्यादा है? उसका क्या कर्तव्य है? इत्यादि प्रश्नों पर उनमें चिन्तन किया गया है। जीवन में से असंयम के अंश को काटकर पृथक करना, साधना में से दोषजन्य मलिनता को निकालकर साफ करना. भलों से बचने के लिए पूर्ण सावधान रहना. भुल हो जाने पर प्रायश्चित्त ग्रहण कर उसका परिमार्जन करना, यह सब छेदसूत्र का कार्य है। __ 'समाचारी शतक' में समयसुन्दर मणी ने छेद सूत्रों की संख्या छ: बतलाई है--- १. दशाश्रुत स्कन्ध २. व्यवहार ३. बृहत्कल्प ४. निशीथ ५. महानिशीथ और ६. जोतकल्प ___ 'जीतकल्प' को छोड़कर शेष पाँच सूत्रों के नाम 'नन्दी सूत्र' में भी कालिक सूत्रों के अन्तर्गत आये हैं। 'जीतकल्प' जिनभद्रगणी क्षमाश्रमण की कृति है, एतदर्थ उसे आगम की कोटि में स्थान नहीं दिया जा सकता। 'महानिशीथ' का जो वर्तमान संस्करण है, वह आचार्य हरिभद्र (वि. ८वीं शताब्दी) के द्वारा पुनरुद्धार किया हुआ है। उसका मूल संस्करण तो उसके पूर्व ही दीमकों ने उदरस्थ कर लिया था। अत: वर्तमान में उपलब्ध "महानिशीथ' भी आगम की कोटि में नहीं आता। इस प्रकार मौलिक छेद सूत्र चार ही हैं- १. दशाश्रुतस्कन्ध २. व्यवहार ३. बृहत्कल्प और ४. निशीथ। श्रुत पुरुष 'नन्दी सूत्र' की चूर्णि में श्रुत पुरुष की एक कमनीय कल्पना की गई है। पुरुष के शरीर में जिस प्रकार बारह अंग होते हैं- दो पैर, दो जंघाए, टो उरु, दो गात्रार्ध (उदर और पीठ), दो भुजाएँ, गर्दन और सिर, उसी प्रकार श्रुत पुरुष के भी बारह अंग हैं। टायां पैर-- आचारांग बायां पैर सूत्रकृतांग दायीं जंघा- स्थानांग बायीं जंघा- समवायांग दायां उस... भगवती बायां उरु ज्ञाताधर्मकथा उदर-उपासकदशा पीट--अनाकन्दशा दायीं भुजा. - अनुत्तरौपणातिक बायीं भुजा- प्रश्नव्याकरण गर्टन विपाक सिर... दृष्टिबाट Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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