Book Title: Jagdusaha Chand Author(s): Kantilal B Shah Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 2
________________ सुरताण-हमीरह राय- रावत्तह दीधउं दानह दीन छलि, न न हूओ न होसि को व्यवहारी जगडू समवड एणि कलि. | १|| ये पावा धड वज्जी दूसम गंजी विनडिय लोकह बहूए परे, सबलह साहा हुंता जे समरत्थह अन्न न दीसई तेह घरे, दुर्बल दीन पार नह लब्भई पापी प्राणह बईठि गलई, न न. । २॥ गढमढ जिणइ कारी कुल सो तारी भुअणि सुजस भंडार भरई, संघपति सह जाणई दूसम माणइ पूरं लीधउं एणि परि, कलिकालह जित्तो जगह वदीतो भडीत भग्गो भूअ-बलिं, न न. ।३ । श्रीमाल न संकई वारो अंकइ दूसम स्यउं जिणइ किद्ध वदो, इंम कहई सधर अछे कोए भूख्यो नयरि नयरि निति पडई सदो, अन्न अघलअ वारी वाहर सारी सुकवि पई पइ एम सलिं. न न. ४ ॥ __ कलश कवितं पनरोतरो दुकाल काल थइ जव करि ढुक्किउ, मायबाप तिणि वारि अलवि करि छोरु मुंकिउ, तिहारइं भडिउ साह श्रीमाल अन्नदानह जिणइ दिप्पति, परिघल पुण्य जिणे करी, करह ओडाव्या नरपति, कणयगिरि गड्ढ करावयु , संघ आणिउ शेव्रुज शिरि, लज्जलू निशि करि लाह्या कंकण घल्ली एणि परि. ५ इति जगडूसाहा छंदः ॥ छ । अठय मूडि सहस्स दिद्ध वीसल वड वीरह, बारह मूडी सहस्स दिद्ध सिंधवा हमीरह, गज्जणवई सुरताण सहस मूडा एकवीसह, मालवपति अट्ठार सहस परताप बत्रीसह, शेज नई रेवयगिरि दान शाल बारांतरइ. जगइअ साह सोला ताई. पुण्य कीध पनरोतरइ. ११ ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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