Book Title: Jagdusaha Chand
Author(s): Kantilal B Shah
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 5
________________ हजार मूडा, सिंधना हमीरने बार हजार मूडा, गजनवी सुलतान (दिल्हीना बादशाह ?) ने एकवीस हजार मूडा, माळवाना राजाने अढार हजार मूडा, (काशीना राजा) प्रताप (सिंह)ने बत्रीस हजार मूडा अनाज आप्यु. संवत १३१२मां शत्रुजय अने रेवंतगिरि (गिरनार)मा दानशाळाओ शरु करावी. सं. १३१५मां सोलापुत्र जगडूशाए आ रीते पुण्यकर्म कर्यु. बीजी कडीमां, कविए जगडूशा पासे भूखाळवा रुप धरीने आवेला दुष्काळने जगडूशाए पराभूत कर्यो एनुं वर्णन छे. स्वर्गेथी दुष्काळ संचों ने देशमा प्रसरी गयो. नगरकोट भेळीने ते श्रीमाळ (जगडूशा) पासे मदद अर्थे पहोंच्यो. (फरी फरीने अन्न आपवा छतां एनुं पेट नहीं भरातां) जगडूशा एने कहे छे के 'तने खूब अन्न खवडावी अकळावी नाखुं अने घीनी धार वहेवडावं. कां तो तने मारी नाखुं कां तो जीवतो ज पकडी लउं.' अंते काळ हार्यो अने एने मुश्केटाट बंधनमां बांधी लेवायो. त्यारे ए याचना करवा लाग्यो, 'हे जगडू, मने जीवतो मूक. हुं पनरोतरो (सं. 1315 नो) दुष्काळ फरी क्यारेय आवीश नहीं, आ कवित्त युगलनी बन्ने कडीओ छप्पयमां छे. बन्ने कडीओ ६-६-चरणनी छे. प्रत्येक कडीनां पहेलां चार चरण 24 मात्राना रोळामां अने छेल्ला बे चरण 28 मात्राना उल्लालामां छे. आ कृति हजि अप्रगट छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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