Book Title: Ishtopadesh
Author(s): Pujyapadswami, Kalyanbodhisuri
Publisher: Jinshasan Aradhak Trust
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१४९
इष्टोपनिषद्
પરિશિષ્ટ-૨ स्वर्गमां अमरोने जे सुखो इन्द्रिय जन्य ए, निरामयी चिरस्थायी देवोने योग्य भोग्य ते ॥५॥ जीवोनी वासना मात्र ए इन्द्रिय सुखो दुःखो; भोग ते रोगवत् पीडा, आपे आपत्तिमां जुओ ॥६॥ मोहाच्छादित जो ज्ञान, जाणे ते न स्वभावने; मेणो चढ्ये खुवे प्राज्ञो, शुद्धि, बुद्धि-प्रभावने ॥७॥ देह गेहादि स्त्री पुत्रो, शत्रु मित्रो धनादि तो; स्वभावे सर्वथा न्यारां, मूढ माने स्वकीय जो ॥८॥ भिन्न देश दिशामांथी पक्षी आवी तरू वसे; प्रभाते सौ स्वकार्यार्थे, ऊडी जाये दिशे दिशे ॥९॥ विराधे अन्यने तुं तो, अन्य ते तुजने हणे; करे छे क्रोध त्यां शाने ? वावे तेवू जगे लणे ॥१०॥ अज्ञाने राग ने द्वेष, नेतरां कष्ट नोतरे; खेंचातां, दंडवत् जीवो, भवाब्धिमां भम्या करे ॥११॥ विपत्ति एक ज्यां जाये, आवे तेवी बीजी घणी; संसारे प्राणीने एवी, घटमाळ विपत्तिनी
॥१२॥ कमातां रक्षतां कष्ट धनादि नाशवंतने; सुखी तेथी गणे तो, शुं, सुख घीथी ज्वरातने ? ॥१३॥ विपत्ति अन्यनी जोतां, पोतानी न विचारतो; वने ज्यां सौ बळे प्राणी, मूर्ख वृक्षे रह्यो छतो ॥१४॥

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