Book Title: Ishtopadesh
Author(s): Pujyapadswami, Kalyanbodhisuri
Publisher: Jinshasan Aradhak Trust
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इष्टोपदेश:
१५२
પરિશિષ્ટ-૨
पामे ना ज्ञानता अज्ञ, ज्ञानी ना अज्ञता ग्रहे; निमित्तमात्र बीजा तो, गतिमां धर्मवत्, बने शमावी चित्तविक्षेपो, एकांते लीन आत्ममां; अभ्यासे उद्यमे योगी, सहजातमतत्त्वता अनुभूति निजात्मानी, जेम जेम प्रकाशती; तेम तेम छता भोगे, स्वयं रुचि विरामती जेम जेम छता भोगे, स्वयं रुचि विरामती; तेम तेम अनुभूति परात्मानी थती छती समस्त विश्वने भाळे, इन्द्रजाळ समुं वृथा; आत्म-लाभ सदा इच्छे, पस्ताये परमां जतां इच्छे एकांतमां वास, चाहे निर्जनता सदा; वदे कार्यवशे किंचित्, तेय शीघ्र भूली जता बोले तोये न बोले ते चाले तो ये न चालता, स्थिरता आत्मतत्त्वे जो, देखे ना ये न देखता विचारे ना शुं आ केवुं कोनुं क्यांथी वळी कहीं ? योगी तो योगमां लीन, देहभानेय ज्यां नहीं जेमां जे वसी रहे छे, त्यां ते रति करे अति; जेमां रमणता जेनी, त्यांथी अन्यत्र ना गति अन्यत्र ना गति तेथी, अन्यने ना अनुभवे, अनन्य उपयोगी ते, अबंध मुक्ति भोगवे
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॥३९॥
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