Book Title: Ilatiputra Charitram
Author(s): Shubhshil Gani
Publisher: Hiralal Hansraj Pandit

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Page 11
________________ पचन्म- H // 9 // -Sax 4 भूता. यतः-ते धत्तूरतरं वपंति भुवने प्रोन्मूल्य कल्पद्रुमं / गृहंति खलुकर्करंनिजकरे प्रक्षिप्य चिंताइलाती मणि // विक्रीय द्विरदं गिरींद्रसदृशं क्रीणंति ते रासभं / ये लब्धं परिहृत्य धर्ममधमा धावंति भोगाश- HI चरित्रं या // 1 // एवं वैराग्यवासितहृदयो यावत् स इलातीपुत्रो वंशाग्रस्थितो ध्यायति, तावत्स कस्यचिन्म॥९॥ हेभ्यस्य गृहे भिक्षार्थ प्रविष्टान् कांश्चिन्मुनीन् स ददर्श. तदेव निजरूपनिर्जितरंभा, दिव्यवस्त्रालंकार धारिणी, चंद्रानना तम्य धनपतेर्वधूस्तेभ्यो मुनिभ्यो मिक्षादानार्थ हस्तधृतमनोहरमोदकस्थाला तदये। A समागत्य स्थिता. परं ते मुनयस्ता ललनां निजदृष्ट्यापि न विलोकयामासुः ततो गृहीतभिक्षास्ते सा- | धवस्ततो मह्यामेव न्यस्तदृष्टयो निवृत्ताः. एवंविधान्निग्रहितेंद्रियांस्तान मुनीन दृष्ट्वा स इलातीपुत्रो निज| हृदि दध्यो, धन्या एते मुनय एव वंदनीयाः. यतः-ते कह न वंदणिज्जा / रूवं दहण परकलत्ताणं // धाराहयत्व वसहा / वच्चंति महीं पलोअंता // 1 // अल सा होइ अकजे / पाणीतहे पंगुला सया होइ // | परतत्तीसु य बहिरा / जच्चंधापरकलत्तेसु // 2 // अहं त्वस्यां नीचकुलोत्पन्नायामपि नटकन्यययां विषयसेवनवांछया लुब्धो जातोऽस्मि, अतो मां धिगस्तु. एवमात्मनिंदातत्परस्य, शुभभावदृढचित्तस्य, शुभ CASI- Esxॐॐॐनना -A 5 %

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