Book Title: Harshsagar Rachit Rajsi Shah ras ka Sar Author(s): Bhanvarlal Nahta Publisher: Z_Arya_Kalyan_Gautam_Smruti_Granth_012034.pdf View full book textPage 3
________________ [ ६ ].ne नागडसा राजसी के भाई नैणसी नेता धारा, मूला आदि तथा मूला के पुत्र हीरजी, हरजी, वरजी और राजा थे। रतनशीका पुत्र अमरा । अमरा का पुत्र सवसी व समरसी थे, मंगल भी मतिमान थे। धनराज के पोमसी और जेठाके पुत्र मोहणसी हुये। साह तला के खीमसी गोधु थे। अभा के पुत्र हाथी, विधाधर, और रणमल थे, ठाकरसी और भाखरसी भी पुण्यवान थे । इस कृटुम्ब में राजसी प्रधान थे, भाई नैणसी और पुत्र रामा और सोमकरण महामना थे । नैणसी के पुत्र कर्मसी हये। इन प्रमारवंश दीपकों ने परामर्श कर जोसी मा'श्वर को बुलाया, उससे जिनालय के लिए उत्तम मुहर्त मांगा। भोजाके पांच पुत्रोंमें चतुर्थ तेजसी थे, इन्होंने आगे सं. १६२४ में नौतनपुरमें शांतिनाथ प्रभुका मंदिर निर्माण कराया था। अब विशाल मंदिर बनाने के लिए विचार किया तो चांपाके पुत्र मूलसीशाहने कितनाक हिस्सा दिया। वीजलदेके पुत्र राजसी और स्वरूपदे-नंदन रामसीने जिनालयका निश्चय किया। सरियादेका भरि मनमें बहुत आह्नादवान् है। ये दोनों भाई और रामसी व मुला जाकर राउल सत्र साम के नंदन जसवंतसे आज्ञा मांगी कि हमें नलिनीगुल्म विमानके सदृश जिनालय निर्माण की आज्ञा दीजिये। राजाज्ञा प्राप्त कर सानंद घर आये और गजधर, जसवंत, मेधाको बुलाकर जिनालय योग्य भूमिकी गवेषणा की और अच्छा स्थान देखकर जिनालयका मंडाण प्रारंभ किया। राजड़के मनमें बड़ी उमंग थी। उसने विमल, भरत, समरा, जियेष्टल, जावड़, बाहड़ और वस्तुपालके शत्रुजयोद्धार की तरह नागनगरमें चैत्यालय करवाया। सं. १६७२ में उसका मंडाण प्रारंभ किया। वास्तुक जसवंत मेधाने अष्टमी के दिन शुभमुहुर्तमें ९९ गज लम्बे और ३५ गज चौड़े जिनालयका पाया लगाया। पहला घर कुजाका, दूसरा किलसु, तीसरा किवास, चौथा मांको, पांचवा गजड़ बंध, छट्ठा डोढिया, सातवां स्तरभरणी, आठवां सरावट, नववां मालागिर, दसवां स्तर छाज्जा, ग्यारहवां छेयार और उसके ऊपर कुभिविस्तार किया गया। पहला दूसरा जामिस्तर करके उस पर शिला-शग बनाये। महेन्द्र नाम चौमुख शिखरके ६०९ शृग और ५२ जिनालयका निर्माण हुआ। ३२ पुत्तलियाँ नाट्यारंभ करती हुई १ नेमिनाथ चौरी, २६ कुभी, ९६ स्तंभ चौमुख के नीचे तथा ७२ स्तंभ उपरिवर्ती थे। इस तरह नागपद्म मंडपवाले लक्ष्मीतिलक प्रासादमें श्रीशांतिनाथ मूलनायक स्थापित किये। द्वारके उभय पक्षमें हाथी सुशोभित किये। आबूके विमलशाहकी तरह नौतनपुरमें राजड साहने यशोपार्जन किया। इस लक्ष्मीतिलक प्रासादमें तीन मंडप और पांच चौमुख हुए। वामपार्श्वमें सहसफणा पार्श्वनाथ, दाहिनी ओर संभवनाथ (२ प्रतिमा, अन्य युक्त) उत्तरदिशिकी मध्य देहरीमें शांतिनाथ, दक्षिणदिशिके भूयरेमें अनेक जिनबिंव तथा पश्चिमदिशिके चौमुखमें अनेक प्रतिमाएँ तथा पूर्वकी अोर एक चौमुख तथा प्रागे विस्तृत नलिनी एवं शत्रुजय की तरह प्रतलियां स्थापित की। तीन तिलखा तोरणवाला यह जिनालय तो नागनगर-नोतनपुरमें बनवाया। तथा अन्य जो मंदिर बने उनका विवरण बताया जाता है। भलशाररिण गांवमें फूलझरी नदीके पास जिनालय व अंचलगच्छकी पौषधशाला बनाई। सोरठके राजकोटमें भी राजड़ने यश स्थापित किया। वासुदेवकृष्णका प्रासाद मेरुशिखरसे स्पर्धावाला था। यादववंशी राजकुमार वीभोजीकुमार (भार्या कनकावती व पुत्र जीवणजी-महिरामण) सहितके भावसे ये कार्य हुए। कांडाबाण पाषाणका शिखर तथा पासमें उपाश्रय बनवाया। कालवड़ेमें यतिमाश्रम-उपाश्रय बनवाया, मांढिमें CD માં શ્રી આર્ય કરયાણાગતમ સ્મૃતિગ્રંથો Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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