Book Title: Harshsagar Rachit Rajsi Shah ras ka Sar
Author(s): Bhanvarlal Nahta
Publisher: Z_Arya_Kalyan_Gautam_Smruti_Granth_012034.pdf

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Page 6
________________ MARATHARAM MARIAAAAAAAAAAAmmmmmmmmmmmmmmmmmRRIAAAAAAAAAA[8 प्रतिष्ठा के प्रसंग से साह राजसी ने नगर के समस्त अधिवासी को भोजन कराया। प्रथम ब्राह्मणों को दस हजार का दान दिया व भोजन कराया। नाना प्रकार की भोजन सामग्री तैयार की गई थी। इन्होंने चतुर्थ व्रत ग्रहण करने के प्रसंग पर भी समस्त महाजनों को जिमाया। पर्युषण पारणे का भोजन तथा साधु-साध्वियों को, चौराशी गच्छ के महात्मा महासतियों को दान दिया। छत्तीस राजकुली लोगों को जिमाया। फिर सूत्रधार, शिलाव, सुथार, क्षत्री, ब्रह्मक्षत्री, भावसार राजगरोस, नारोह भाटीया, लोहाणा, खोजा, कंसारा, भाट, भोजक, गंधर्व, व्यास, चारण तथा अन्य जाति के याचकों को एवं लाडिक, नाडक, सहिता धूइया, तीन प्रकार के कणबी, सतूपारा, मणलाभी, तंबोली, माली, मणियार, भड़भूजे, प्रारुपा, लोहार, सोनी, कंदोई, कमारण गिर, धूध, सोनार, पटोली, गाजी को पक्वान्न भोजन द्वारा संतुष्ट किया। अब कवि हर्षसागर राजड़ शाह की कीति से प्रभावित देशों के नाम बताते हैं। जिस देश में लोग, अश्वमुखा, एकलपगा, श्वानमुखा, वानरमुखा, गर्दभरणगा, तथा हाथीरूप सुअरमुखा तथा स्त्रीराज के देश में, पंचभर्तारी नारी वाले देश में, राजड़ साह के यश को जानते हैं। सिर पर सगड़ी, पैरों में पावड़ी तथा हाथ से अग्नि घड़भर भी नहीं छोड़ते ऐसे देशों में चीन, महाचीन, तिलंग, कलिंग, वरेश, अंग, बंग, चित्तौड़, जैसलमेर, मालवा, शवकोट, जालोर, अमरकोट, हरज़म, हिंगलाज, सिंध, ठठा, नसरपुर, हरमज, बदीना, आदन, वसुस, रेड़ जापुर, खंभात, अहमदाबाद, दीव, सोरठ, पाटण, कच्छ, पंचाल, वागड़, हालाहर, हरमति इत्यादि देशों में विस्तृत कीर्तिवाला राजड़ साह परिवार आनंदित रहे । सं. १६९८ में विधिपक्ष के श्री मेरुतुगसूरि-बुधमेरु-कमल में, पंडित भीमा की परंपरा में उदयसागर के शिष्य हर्षसागर ने इस रास प्रबंध की वैशाख सुदी ७ सोमवार के दिन रचना की। सरियादे के रासका सार साह राड़क के संघ के बाद किसी ने संघ नहीं निकाला । अब सरियादे ने साह राजड़ के पुण्य से गिरनार तीर्थ का संघ निकाला और पांच हजार द्रव्य व्यय कर सं. १६९२ में अक्षय तृतीया के दिन यात्रा कर पंचधार भोजन से संघ की भक्ति की। रा. मोहन से नागड़ा चतुर्विध की उत्पत्ति को ही पूर्वाम्नायके अनुसार पुत्री असुखी तथा जहां रहेंगे खूब द्रव्य खरच के पुण्यकार्य करेंगे । व तीनों को (माता, पिता और श्वसुर के कुलों को) तारेंगे। ___सरियादे ने (राजड़ की प्रथम पत्नी ने) सं. १६९२ में यात्रा करके मातृ, पितृ और श्वसुर पक्ष को उज्जवल किया। उसने मास पक्ष क्षमणपूर्वक याने तपों को संपूर्ण करके, छरि पालते हुए पाबु और शत्रुजय की भी यात्रा प्रारंभ की। ३०० सिजवाला तथा ३००० नरनारियों के साथ जुनागढ़ गिरनार चढ़ी । भाट, भोजक, चारण, आदि का पोषण किया फिर नगर लौटी। इनके पूर्वज परमारवंशी रा. मोहन अमरकोट के राजा थे। जिन्हें सद्गुरु श्री जयसिंह सूरि ने प्रतिबोध देकर जैन बनाया था। कर्म संयोग से इनके पुत्रपुत्री नहीं थे, प्राचार्य श्री ने इन्हें मद्य, मांस और हिंसा का त्याग करवा के जैन बनाया। गुरु ने इन्हें पाशिष दी जिससे इनके पाठ पुत्र हुए। पाँचवाँ पुत्र नाग हुअा। बाल्यकाल में व्यंतरोपद्रव से बाल कड़ाने लगा। बहुत से उतारणादि किये। बाद में एक पुरुष ने प्रकट होकर नाग से नागड़ा गोत्र स्थापित करने को कहा । और सब कार्यों की सिद्धि हुई। અમ શ્રી આર્ય ક યાણગૌતમસ્મૃતિ ગ્રંથ કાપી Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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