Book Title: Harshsagar Rachit Rajsi Shah ras ka Sar
Author(s): Bhanvarlal Nahta
Publisher: Z_Arya_Kalyan_Gautam_Smruti_Granth_012034.pdf

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Page 2
________________ जिस ऐतिहासिक रासका सार प्रस्तुत लेख में दिया जा रहा है । वे नवानगरके अंचलगच्छीय श्रावक थे और वहाँ उन्होंने एक विशाल मंदिर का निर्माण करवाया । इनके संबंध में अचलगच्छ पट्टावली में तो वर्णन मिलता ही है । तथा इस राससे पहले का मेघकविरचित एक अन्य रास सं. १६१० में रचित सिंधिया ऑरियण्टल इन्स्टीट्यूट उज्जैन में प्राप्त है, जिसकी प्रतिलिपि मंगाकर जैन सत्यप्रकाश के वर्ष १८, अंक ८ में सार प्रकाशित किया जा चुका है । उस राससे यह रास बड़ा है और पीछे का रचित है । इसलिए वर्णन कुछ विस्तृत और अधिक होना स्वाभाविक है, कविता की दृष्टि से प्रथम प्राप्त राससे यह रास हीन कोटिका ही है । कई जगह भाव स्पष्ट नहीं होते हैं पर लम्बी नामावली ऊबा देती है । यह राजसी कारित नवानगर के जिनमंदिरकी नींव डालने के समय में मत भिन्नता है; प्रथम रासमें सं. १६६८ अक्षय तृतीया और दूसरे रासमें १६७२ अष्टमी तिथि को खतमुहूर्त होना लिखा है । इस रासमें राजसी के पिता तेजसी द्वारा सं. १६२४ में नवानगर में शांतिजिनालय के निर्माणका भी उल्लेख है । राजसी साहके मंदिर का भी विस्तृत वर्णन इस रासमें है : जैसे ९९ x ३५ गज तथा ११ स्तरों के नाम व शिल्पस्थापत्य का भी अच्छा परिचय है । शत्रुञ्जय यात्रा तथा पुत्र रामू के गौड़ी पार्श्वनाथ यात्रा का अभिग्रह होने से संघयात्रा का वर्णन तथा लाहरण की विस्तृत नामावली एवम् दो सौ गोठी मूढज्ञातीया लोगों को जैन बनाने का प्रस्तुत रास में महत्त्वपूर्ण उल्लेख है । सं. १६९६ में नवानगर की द्वितीय प्रतिष्ठा का तथा ब्राह्मणों को दान व समस्त नगर को जिमाने आदि का वर्णन भी नवीन है । इसके बाद दो छोटे रास राजसी साह की स्त्रियों से संबंधित हैं जिनके संक्षिप्त सार भी इसके बाद दे दिये हैं । सरीयादे के रासमें तीर्थयात्रा संघ निकालने तथा राणादे रासमें स्वधर्मी वात्सल्यादि का वर्णन है । नवानगरके इस मंदिरका विशेष परिचय व शिलालेख आदि प्रकाश में ग्राने चाहिए। वहाँ के अन्य मंदिर भी बहुत कलापूर्ण व दर्शनीय हैं । इन सबका परिचय फोटो व शिलालेखादि के साथ वहाँ के संघ को प्रकाशित करना चाहिए । राजसी रासका सार : कवि हर्षसागरने हंसवाहिनी सरस्वती एवं शंखेश्वर व गौड़ी पार्श्वनाथ को नमस्कार करके नागड़ा साह राजसीका रास प्रारंभ किया है । भरतखंडमें सुंदर और विशाल 'नागनगर' नामक नगर है जहां यदु वंशियों का राज्य है । राउल जामके वंशज श्री विभो, सतोजी, जसो जाम हुए जिनके पाट पर लाखेसर जाम राज्य करते हैं । इनके राज्य में प्रजा सब सुखी, मंदिर जलाशय और बागबगीचों का बाहुल्य है; चौमुख देहरी जैनमंदिर, नागेश्वर शिवालय, हनुमान, गणेशादि के मंदिर हैं । श्री लखपति जामकी प्रिया कृष्णावली और पुत्र रणमल व रायसिंह हैं। राजा के धारगिर और वसंतविलास बाग में नाना प्रकार के फलादि के वृक्ष फले रहते हैं । बड़े-बड़े व्यापारी लखपति और करोड़पति निवास करते हैं। नगर में श्रीमाली बहुत से हैं । एक हजार घर श्रावकों के हैं। छह सौ पांच घर प्रोसवालों के हैं, नगरशेठ सवजी है उसके भ्राता नैणसी है । यहाँ नागड़ वंशका बड़ा विस्तार है जिसका वर्णन किया जाता है । अमरकोट के राजा रा' मोहरणके कुल में ऊदल, जाहल, सधीर सूटा - समरथ - नरसंग - सकजू - वीरपाल कंधोधर, हीरपाल और क्रमशः भोज हुग्रा । भोज के तेजसी और उनके पुत्र राजसी ( राजड़) कुलमें दीपक के समान यशस्वी हुए थे, धर्म कार्य में जागसी, जावड़, जगडू, भाभा, राम, कुरपाल, श्रासकररण, जसू, टोडरमल भाल, कर्मचंद, वस्तुपाल और विमल साहकी तरह सुकृतकारी हुए । શ્રી આર્ય કલ્યાણ ગૌતમ સ્મૃતિગ્રંથ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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