Book Title: Guruvandan Bhashyano Chandobaddh Bhashanuvad
Author(s): Sushilvijay
Publisher: Vijaylavanyasuri Gyanmandir
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पय अड-वन्न छ-ठाणा छ-ग्गुरु-वयणा आसायण-ति-तीसं । दुविही दु-वीस-दारेहिं चउ-सया-बाणउइ ठाणा ॥९॥ वंदणयं चिह कम्मं किइ-कम्मं पूअ-कम्म विणय-कम्मं । गुरुवंदण पण-नामा दवे भावे दुहोहेण [दुहाहरणा] ॥१०॥ सीयलय खुड्डुए वीर-कन्ह सेवग-दु पालए संबे । पंचे ए दिटुंता किइ-कम्मे दव्व-भावेहिं ॥११॥ पासत्थो ओसन्नो कुसील संसत्तओ अहा-च्छंदो । दुग-दुग-ति-दुणेग-विहा अ-वंदणिज्जा जिण-मयम्मि ॥१२॥ आयरिय उवज्झाए पवत्ति थेरे तहेव रायणिए । किइ-कम्म-निज्जरऽट्ठा कायव्वमिमेसि पंचण्हं ॥१३॥ माय-पिय-जिटु-भाया ओमावि तहेव सव्व-रायणिए । किइ-कम्म न कारिजा चउसमणाई कुणंति पुणो ॥१४॥ विखित्त पराहुत्ते अ पमत्ते मा कयाइ वंदणिज्जा । आहारं निहारं कुणमाणे काउ-कामे य ॥१५॥ पसंते आसण-त्थे अ उवसंते उवदिए । अणुनवित्तु मेहावी किइ-कम्मं पउंजइ ॥१६॥ पडिकमणे सज्जाए काउस्सग्गा-ऽवराह-पाहुणए । आलोयण-संवरणे उत्तमऽटे य वंदणयं ॥१७॥ दोऽवणयमहा-जायं आवत्ता बार चउ-सिरति-गुत्तं । दु-पवेसिग-निकखमणं पण-वीसा-ऽऽवसय किइ-कम्मे ॥१८॥ किइ कम्मपि कुणंतो न होइ किइ-कम्म-निज्जरा-भागी । पण-वीसामन्नयरं साहू ठाणं विराहतो ॥१९॥

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