Book Title: Gungo Goltana Gun Gay
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 9
________________ सप्टेम्बर २००८ पहोंच धरावनार आवा देवचन्द्रजी सिवाय, बीजा कोर्नु होय ? ओक वातनी चोखवट अहीं ज करवी जोईओ. ज्ञानमञ्जरीनां विदुषी सम्पादिकाओ आ सम्पादनमां, देवचन्द्रजी-संमत पाठ (पूर्णेनाऽपूर्ण) नथी राख्यो, पण उपाध्यायजीसंमत (पूर्णेन पूर्ण) पाठ ज राख्यो छे. तेमनी समक्ष उपस्थित हस्तप्रतो पैकी अक के बे ज प्रतमां अपूर्ण पाठ होइ तेमणे बहुमतप्रतोनो-ते परम्परामान्य होवाने कारणे - पाठ ज राख्यो छे. परंतु आम करवा जतां मुसीबत मे आवी पडेल छे के श्रीमद्जीओ टीकामां अपूर्ण पाठ स्वीकारीने ज विवरण कर्यु छे. तेमणे वैकल्पिक रूपे, पहेला पूर्ण पाठy विवरण कर्यु होय अने पछी अथवा कहीने अपूर्ण पाठ दर्शावी तेनुं विवरण कर्यु होय तेवू तो टीकाग्रन्थमा जोवा नथी मळतुं ! फलतः मूळ ग्रन्थनो आ सम्पादनमा स्वीकृत पाठ अने ते परनो टीकाग्रन्थ - बन्ने साव नोखां पडी जाय छे; जे ग्रन्थथी अजाण जिज्ञासु माटे सन्दिग्धता सर्जी शके. अस्तु. बीजुं उदाहरण जोइओ : प्रथम अष्टकना पांचमा श्लोकमा पूर्वार्धनो पाठ आ प्रमाणे छे : "पूर्यन्ते येन कृपणास्तदुपेक्षैव पूर्णता" । आनो टबार्थ :- "पूराई जेणई धनधान्यादिक परिग्रहे हीनसत्त्व लोभीओ पुरुष, [ते] धन-धान्यादि परिग्रहनी उपेक्षा ज पूर्णता कहीइं" - आवो छे. अहीं श्री देवचन्द्रजी महाराज जरा जुदा पडे छे, अने आ श्लोकगत 'तदुपेक्षव' ओ पदना बे अलग अलग अर्थ आपे छे. जुओ : (१) "पूर्यन्ते' 'येन' प्रचुरा भवन्ति 'सा' -पूर्णता उपाधिजा 'उपेक्ष्या एव' - अनङ्गीकारयोग्या एव । (२) अथवा तदुपेक्षा एव, न हि एषा पूर्णता, किन्तु पूर्णतात्वेन उपेक्षते - आरोप्यते इत्यर्थः ॥" (अहीं उपेक्ष्यते-आरोप्यते होइ शके.) __आ बन्ने विकल्पोमां 'तदुपेक्षा' पदनो 'तस्य उपेक्षा-तदुपेक्षा' अम मानीने विवरणकार चालता नथी. पहेला अर्थमां सा उपेक्ष्या ओवो तदुपेक्षानो अर्थ दर्शावे छे, अने बीजामां सा उपेक्ष्यते अवो अर्थ तेमना मनमा छे. प्रतिभानो आ उन्मेष, उपाध्यायजीना शब्दोमां अने तेनां अगाध रहस्योमां श्रीमद् केवा तो गरकाव थई जता हशे तेनी, गवाही आपी जाय छे. हजी ओक उदाहरण जोइ लईओ : २४मा शास्त्राष्टकना त्रीजा श्लोकमां ग्रन्थकारे शास्त्र शब्दनी निरुक्ति आपी छे : "शासनात् त्राणशक्तेश्च बुधैः Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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