Book Title: Gommateshwar Bahubali
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 6
________________ गोम्मटेश्वर बाहुबली : एक नया चिन्तन में मुनिजन भी वन को छोड़ गाँव के समीप रहने लगे हैं। यह खेद की बात है।" नगरवास और सुख-सुविधाओं की ओर झुकाव वाले दिगम्बरों के सामने वन-जंगल में पर्वत की चोटी पर लतागुल्मों से आवेष्टित मुनिदशा की यह मूर्ति निश्चित ही एक संकेत करती है। हो सकता है इसके निर्माण में इसके निर्माता का यह भाव भी रहा हो । एक गृहस्थ यदि मुनिराजों को कुछ कहना चाहे तो उसके लिए इससे सुन्दर रूप और कौन हो सकता था? अन्यथा उसने चौबीस तीर्थंकरों की तथा अरहंत अवस्था की मूर्ति क्यों नहीं स्थापित की? लगता है मुनियों के सामने आदर्श उपस्थित करने के लिए मुनि अवस्था की मूर्ति बनाई गई, क्योंकि अरहंत की मूर्ति को तो बेलों से आवेष्टित किया नहीं जा सकता था । पूर्वपरम्परा से हटकर मुनिराज बाहुबली की बेलों से आवेष्टित मूर्ति की स्थापना में कोई विशेष कारण अवश्य होना चाहिए। दिगम्बरत्व के प्रति द्वेष और अनास्था रखने वाले लोगों द्वारा दिगम्बर मुनियों के निर्बाध विहार में सदा ही अनेक बाधायें उपस्थित की गई हैं; तथा पद्मासन दिगम्बर जिनबिम्बों का श्वेताम्बरीकरण भी बहुत हुआ है। हो सकता है मूर्ति-निर्माता के हृदय में एक कारण यह भी रहा हो कि ऐसी नग्नदिगम्बर खड्गासन विशाल मूर्ति स्थापित की जावे कि नग्नता स्पष्ट होने से जिसका श्वेताम्बरीकरण न किया जा सके और जो नग्नदिगम्बर मुनियों के निर्बाध विहार के प्रमाण के रूप में उपस्थित रहे। इन सब महत्त्वपूर्ण तथ्यों के उद्घाटन से अरुचि रखने वाले गोम्मटेश्वर बाहुबली : एक नया चिन्तन यह कह सकते हैं कि ये सब तो आपकी (लेखक की) कल्पनाएँ हैं, पर मेरा कहना यह है कि चामुण्डराय जैसे विलक्षण बुद्धि के धनी राजनीतिज्ञ राजमंत्री के लिए संपूर्ण भारत की एकता, दिगम्बर मुनियों का आदर्श और उनके विहार की निर्बाधता तथा दिगम्बरत्व की निर्बाध प्रतिष्ठा जैसे महत्वपूर्ण विषयों के प्रति सजग रहना सम्भव ही नहीं, अपितु अत्यन्त आवश्यक एवं स्वाभाविक है। दूसरी बात यह है कि जब हम गतानुगतिक ऊटपटांग निष्फल किंवदन्तियों को सत्य का रूप देकर प्रचारित करने में संकोच नहीं करते हैं, तो हमें इन बौद्धिक प्रतिपत्तियों को, जो कि सत्य के बहुत कुछ निकट होने के साथ-साथ प्रेरणास्पद एवं मार्गदर्शक भी हैं, यथायोग्य महत्व देना ही चाहिए। यदि हम इस महान प्रसंग पर इस विशाल जिनबिम्ब के इन महत्वपूर्ण संकेतों को समझ सकें, जीवन में इनसे कुछ सीख सकें तो हमारा यह उत्सव तो सार्थक होगा ही, साथ में हम एकता के सूत्र में भी आबद्ध हो सकेंगे, शिथिलाचार से दूर रहकर दिगम्बरत्व की सच्ची प्रतिष्ठा स्थापित कर सकेंगे। यह चर्चा तो मूर्ति, मूर्तिकार और मूर्तिप्रतिष्ठापक की भावना की हुई; आओ अब मूर्तिमान बाहुबली के जीवन-प्रसंगों पर भी दृष्टिपात करें। धीर-वीर बाहुबली के जीवन-प्रसंगों में सर्वाधिक चर्चित प्रसंग है - भरत-बाहुबली युद्ध । जब दोनों ओर की सेनायें समरभूमि में युद्ध के लिए सन्नद्ध थीं, तभी मंत्रियों की ओर से

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