Book Title: Gita Darshan Part 04
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 15
________________ है-और दूर से भी दूर है / परम गति—पूर्ण जीवंत ठहराव है / परम गति-अशरीरी अवस्था है / परमात्मा दुर्लभ है, क्योंकि हम बहुत उलझे हैं | ध्यान, समाधि है-स्वयं पर लौट आना। वासना, समय और दुख ...75 ___ पश्चिम सोचता है : दुख का कारण परिस्थिति में है / विज्ञान और भौतिक समृद्धि का विकास / बाह्य सफलता का शिखर-और पश्चिम का विषाद / पूरब की अंतर्दृष्टि है : चेतना के रूपांतरण से दुख-मुक्ति / दुख का सूत्रः वासना / वासना के लिए पुनः-पुनः जन्म चाहिए / मोक्ष में समय नहीं है / समय नहीं अर्थात वासना नहीं / वर्तमान क्षण-शाश्वत और अनंत / वासना की दौड़ के लिए समय चाहिए-स्थान नहीं / समाधि कालातीत है / वासना दुष्पूर है / अधूरेपन की कोई सीमा नहीं है / जड़ पुनरावृत्ति / क्षणभंगुर को पकड़ने का परिणाम-विषाद, दुख / प्रेम को स्थिर बनाने की कोशिश / शाश्वत को जान लेने पर क्षणभंगुर की कामना समाप्त / जीवन में चार हजार संभोग-पुनरावृत्ति मात्र / बुढ़ापे में भी काम-वासना सताती है / पिछले जन्मों की स्मृति का परिणाम / कुछ भी नया नहीं है | परमात्मा नित-नूतन है | काल-रहस्य / समय की सापेक्षता / मृत्यु-बोध-समय-बोध / समय का अतिक्रमण / ध्यान है विधि। 7 सृष्टि और प्रलय का वर्तुल ... 91 समय के भीतर घटित सृष्टि और प्रलय-स्वप्नवत है / दर्पण या झील में प्रतिफलन का होना / समय के तत्व को जानने वाले के लिए संसार स्वप्नवत है / समय ही संसार है / समय के पार जाना / अधिक वासना—तो समय की जकड़ अधिक / समय या वासना के पार जाने का सूत्रः क्षण में जीना / वासना के फैलाव के लिए भविष्य और अतीत जरूरी / परमाणु या इलेक्ट्रान्स में टूटकर पदार्थ पदार्थ नहीं रह जाता / क्षण में, समय समय नहीं रह जाता / क्षण में ठहरने पर समय खो जाता है / सृष्टि है-ब्रह्म का एक दिन / प्रलय है-ब्रह्म की एक रात / अव्यक्त शून्य से सृष्टि का जन्म / पदार्थ का परमाणु में विघटित होने पर, अव्यक्त में लीन हो जाना / विज्ञान का समर्थन-धर्म को / नॉन-यूक्लिडियन ज्यामेट्री / आधुनिक विज्ञान का अनिश्चयवाद / ब्रह्म-मुहूर्त में अव्यक्त से व्यक्त का जन्म / निद्रा है-आंशिक मृत्यु / अव्यक्त में गिर जाना / पश्चिम की समय की धारणा–सीधी रेखा में / पूरब ने पुराण लिखा-इतिहास नहीं / पुराण लेखा-जोखा है अंतरतम का / तिथियों को बहुत मूल्य नहीं / ब्रह्म के हर दिन में राम जैसे व्यक्ति का होना / ब्रह्म के एक दिन में चौबीस तीर्थंकरों का होना / पुराणों में सनातन सत्य वर्णित / सृजन और विनाश-एक ही प्रक्रिया / ब्रह्मांड फैल रहा है / ब्रह्म अर्थात फैलने वाला / प्रलय अर्थात फैलते-फैलते टूटकर बिखर जाना / प्रलय अर्थात व्यक्त की पुनः वापसी अव्यक्त में / अर्जुन! तू अपने को युद्ध का कर्ता मत मान / जो जन्मा-उसकी मृत्यु सुनिश्चित / अव्यक्त से भी परे क्या है / ब्रह्म है-सनातन अव्यक्त / मनुष्य की भी तीन परतें–व्यक्त शरीर, अव्यक्त मन, अव्यक्तातीत आत्मा / मृत्यु-क्षण में पूरा मन बीजरूप होकर नए गर्भ की खोज में निकल जाता है / मां-बाप के व्यक्त जीवाणु और अव्यक्त मनस-बीज का संयोग / जो शरीर के पिंड में है, वही विराट रूप से ब्रह्मांड में है / बौद्धिक ज्ञान नहीं—अंतोज में निकलना / हमें शरीर के रहस्यों का भी पूरा पता नहीं है / शरीर की छिपी हुई शक्तियों को जगाकर मन की खोज में लगाना / स्मृतियों का अपार संग्रह / सिद्धियां मन की ही शक्तियां हैं और संसार का ही हिस्सा हैं / परम यात्रा में सिद्धियों की बाधा / शक्तियों के दो उपयोग-क्षुद्र वासनाओं के लिए या ऊर्ध्वगमन के लिए / बोध घटनाः एक गरीब दर्जी को दस लाख की लाटरी मिलना / रुपयों से जीवन को नष्ट करना / ध्यान से मन की अव्यक्त शक्तियों का प्रकट होना / शक्तियों के दुरुपयोग से बचना / बोध घटना: एक महिला का हीलिंग की शक्ति मिलने पर ध्यान बंद कर देना / मन की शक्तियों को आगे की यात्रा के

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