Book Title: Gita Darshan Part 04
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 13
________________ परमात्मा की गैर-मौजूद-सी मौजूदगी / ब्रह्म अखंड है / पदार्थ विभाज्य है / विनाश के लिए खंड होना जरूरी / असीम का विभाजन संभव नहीं / जो भी निर्मित होगा, वह विनष्ट होगा / चैतन्य पुरुष अधिदैव कहा जाता है / पदार्थ है मूछित / परमात्मा है पूर्ण चैतन्य / मनुष्य है : अर्ध-मूछित, अर्ध जाग्रत / क्रोध, हिंसा आदि के लिए मूर्छित होना जरूरी / सभी धर्मों द्वारा मादक द्रव्यों का निषेध / मूर्छा और अमूर्छा के बीच डोलता आदमी / अर्जुन को देहधारियों में श्रेष्ठ क्यों कहते हैं कृष्ण? / परम सत्य के अनुभव, दर्शन, श्रवण, स्पर्श के निकट होने के कारण / कृष्ण के निकट अर्जुन, बुद्ध के निकट आनंद, क्राइस्ट के निकट ल्यूक-अलौकिक क्षण हैं वे / पूर्ण चैतन्य को अधियज्ञ कहा है / निर्धूम ज्योति-बिन बाती बिन तेल / ज्योतिर्मय ब्रह्म / तीन आयाम-अचेतन, अर्ध चेतन, पूर्ण चेतन / मूर्छा में सुख का धोखा / दुख को भूलना है-सुख / दुख का मिट जाना है-आनंद / मृत्यु के क्षण में असली चेहरे का प्रकट होना / जिंदगी भर की आदत-मरते समय तक पीछा / मरते हुए आदमी को राम-नाम या गीता सुनना / जीवन भर प्रभु-स्मरण-तो ही मरते क्षण में स्मरण संभव / प्रभु-स्मरण न हो, तो सदाचार से अहंकार का पुष्ट होना / भय से किया गया प्रभु-स्मरण व्यर्थ है / मृत्यु का भय—शरीर से तादात्म्य के कारण / मृत्यु-क्षण के अंतिम भाव के अनुकूल ही नया जन्म मिलना / अखंड जप का आधार–किसी भी क्षण मृत्यु आ सकती है / रात का अंतिम विचार-सुबह का पहला विचार / यंत्रवत राम-राम करना-आटोनामस, स्वायत्त / यंत्रवत और हार्दिक स्मरण का फर्क / किसी के प्रेम में गिरना / बरबस स्मरण आना / प्रभु-प्रेम में ऊपर उठना / सब तरफ से उसका ही संदेश आना / मृत्यु का पूर्वाभ्यास संभव नहीं / अभ्यास वाला स्मरण मौत में काम न आएगा / हार्दिक प्रभु-प्रेम साथ रहेगा / हमारे हृदय-छोटे, संकुचित / जितना बड़ा प्रेम-पात्र-उतना बड़ा आपका हृदय / विराट प्रेम-परमात्मा के बहुत निकट / सूर्योदय और प्रभु-स्मरण / तारों भरा आकाश/ उसे भूल ही नहीं पाते, तो नमाज पढ़ने मस्जिद क्यों जाएं : बायजीद / गीता-प्रवचन सुनना काफी नहीं-सुबह के ध्यान के प्रयोग में आएं / कीर्तन है-प्रभु के हार्दिक स्मरण में नाचना-गाना। स्मरण की कला ... 31 सतत प्रभु-स्मरण / अर्जुन, तू मेरा स्मरण कर-और युद्ध भी कर / चित्त केवल एक चीज पर एकाग्र होता है / नाम तो बहाना है-स्मरण बनाए रखने का / स्मरण के लिए कपड़े में गांठ लगाना / रूजवेल्ट का बोलते समय समय भूल जाना / जीवन की हर घटना, हर वस्तु प्रभु की याद दिलाए / काम-ही ध्यान बन जाए / कबीर का चादर बुनना और बाजार में बेचना / परमात्मा भी विराट काम में रत है | अर्जुन की चिंता-युद्ध और धर्म दो अलग चीजें हैं / घर में रहते हुए संन्यासी रहो / जीवन बेबूझ है / ध्यानपूर्वक युद्ध हो सकता है / स्मरण की कला / बुद्धि और हृदय के बीच सतत विरोध-स्मरण में बाधा / लोभ या भय से निकला प्रभु-स्मरण-बौद्धिक व्यापार है / बचपन से लोभ और भय को ईश्वर से जोड़ना / लाभ-केंद्रित जीवन शैली / स्मरण को एक साधन की तरह उपयोग करना / परमात्मा की खुशामद / तथाकथित आस्तिक-नास्तिक से भी बदतर / सारा शिक्षण बुद्धि का है / कीर्तन में बुद्धि का बाधा डालना / बुद्धि ऊपरी सतह है हमारी / हृदय है—गहन अंतस्तल / बुद्धि से विज्ञान का और हृदय से धर्म का संबंध / हृदय से पूछे : क्या करना है / बुद्धि से पूछे : कैसे करना है / बुद्धि और हृदय के मिलन पर योग फलित / बुद्धि है अहंकार / हृदय है समर्पण / अपने को बचा-बचाकर प्रेम करना / हमारी, प्रार्थना, नमाज-एक व्यायाम जैसा / अर्पण भाव के प्रयोग करनाः जमीन में लेट कर; सूरज की किरणों में / अर्पण भाव का कोई अवसर न चूकें / अर्पण भाव को फैलने दें-सीमित से विराट की ओर / अहंकार द्वारा बहाने खोजना-समर्पण से बचने के लिए / समर्पण के बहाने-व्यक्ति, मूर्ति / चूहे का शिवजी की मूर्ति पर चढ़ना; स्वामी दयानंद का देखना; आर्य-समाज का जन्म / समर्पण सीखें-पृथ्वी से, सूरज से, आकाश से / प्रेम और सौंदर्य से वंचित व्यक्ति को समर्पण कठिन / अकड़ा हुआ आदमी / प्रभु में एकीभाव / मन की चंचलता का आधार-सतत नए की खोज; पुराने से ऊबना / अपने से ही ऊबा हुआ आदमी / ध्यान अर्थात एकरसता से न ऊबने का अभ्यास / परमात्मा सर्वज्ञ है / ज्ञान की घोषणा–अज्ञान का लक्षण / यथार्थ ज्ञानी को न ज्ञान का पता होता—न अज्ञान का / पंडित-पुरोहित के पास रेडीमेड उत्तर / कृष्ण के शून्य से उत्तर का आना / परमात्मा नियंता है अर्थात परम नियम है / पानी का नीचे बहना; जमीन की कशिश / परमात्मा सूक्ष्मतम है / परमात्मा प्रकाशरूप है / अविद्या से परे है / मैं अज्ञानी हूं-यह एक धारणामात्र है / अज्ञान-आत्म सम्मोहन है।

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