Book Title: Gautamswami Ras Parichayatmaka Bhumika
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 3
________________ ॥४॥ ॥५॥ ॥६॥ विणय विवेक विचार सार गुणवंत गंभीरा । चउदह विद्या निपुण भणी गुणगउरव पावहिं वेय वरवा[ण]हिं पांच पांच सय छात्र पढावहिं ते तिनइ उवज्झाय राय-राणिहिं संमाणिय भगति करी विप्र सोमल वधि पावापुरि आणिय । जन्न करावण रिसि देसि देसंतर केरा तेडिय आवहिं तित्थ साढ(आठ) उवज्झाय अनेरा ते स (तेम)वियत्तु सुहंमु बेवि पण पण सयजुत्ता मंडिय मोरियपुत्त सड्ढ ति ति सयसंजुत्ता । तह य अकंपिय अचलभाय मेयज्ज पभासू तिहुं तिहुँ सयसडं आवि करहि नियविज्जविकासू इम मिलिया विप्र सहससंख तिहं वेद वखाणहिं मंडहिं जन्न करंति होम परमत्थ न जाणहिं । इणि अवसरि जिण वद्धमाण केवल पावेई लाभ जाणि जगनाह तिहां तक्खणि आवेई वस्तुः गाम गुब्बरि गाम गुब्बरि विप्र वसुभूइ तासु पुत्त पुहविं गरुया इंद्र-अगनि-वायभूइ भणियइ । वर वेयविद्यागुणहं जन्नकाजि धरि ते जि गणियइ ॥ पावापुरि सोमलतणइ मिलिया बंभण लोय ।। वीरजिणेसरु आवियउ आणंदिउ सहु कोय .. प्रथम भाषा ॥ वीरजिणेसर आगम जाणी तक्खणि आवहिं देव विमाणी । पुर पर सिरि जोयण विसथारो समवसरण मंडहिं जगि सारो ॥९॥ रुप्प-कणय-रयणुत्तम सालो कणय-रयण-मणिसिहर विसालो । छत्त चमर किंकिल्लि पहाणू जाणीजइ किरि अमरविमाणू ॥१०॥ तहिं रू णझुण किं महाधज लहकइ धूपघटी घण गंध महक्कइ । देवकुसुम-परिमल महमहए सुरदुंदुहिं सुणि जणु गहगहए ॥११॥ तहिं बइसी जिणवर वधमाणू करइ अमियमइ वाणि वषाणू । ॥७॥ ॥ ॥८॥ [58] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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