Book Title: Gautamswami Ras Parichayatmaka Bhumika Author(s): Shilchandrasuri Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 7
________________ चतुर्थ भाषा ॥ मगहेसर सेणियपमुह सयल नरेसर बंदि पाउ । भवियलोय - आणंद करो, महिमंडलि विहरइ मुणिराउ नाणगुणिहिं केवल तुलए, सरलपणइ पुण बाल विसेषई । गोयमगुरु गुरुसमरसभरिउ, राय रंक समद्रेठिं पेखइ पंचमी भाषा ॥ कत्तिय अमावस वीरू जिणु, पुर परिसरट्ठिय गामि ते । बोहेवा दिवसरम दिउ, पेसिउ गोयमसामि ते तं प्रतिबोधि करेवि तहिं निसि रहियउ गणधारु ते । जां जोवइ तां गयणियले सुरगण मिलिय अपारु ते 114011 ॥५१॥ ॥५३॥ बालक छह वरिसहंतणड अइमुत्तउ गुरु गोयम रासे । देषी प्रतिबोधिउ लियए संजम वीर जिणेसर पासे त्रिविद्धि वियारिय सीहजिउ, विप्र जुउ जिणवर दीठइ नासइ । गोयमगुरु करुणानिलङ, तेहइ मनि आणंद उल्लस वीरवयणि नियदोसलवो जाणि जि आणंदु जाइ खमावइ । तिहं मुणि अज्जवगुणतणउ, केवल विणु कोई पार न पावइ ॥५२॥ सावत्थिय पुरवर मिलिय बिहु परियरिय गुरुगोयम - केसी । धरम विचारु करंति तहिं सीसहं संसय-भंजण - रेसी केसी जि जि पृच्छ करइ गोयभु तिहं तिहं अ[थु ] कहेइ । तउ केसी सीसिहिं सहिउ वीरि कहिउ व्रत - वेस गामागरपुरपट्टणिहिं खेडमडबहिं कर विहारू । पावापुरि पावस रहिउ वीर जिणेसरसिउं गणधारू वस्तु: गुणिहिं गरुवउ गुणिहिं गरुवउ प्रथम गणधारू सुविचार घणसार सम विमल चित्त चारित्तसुंदरु । बहुलोय - संसय - तिमरु पूरु- सुरु पणमियपुरंदरु || गामागरपुरपट्टणिहिं विहरंतर गुणरासि । वीरजिणेसरसउं रहिय पावापुरि चउमासि वहेइ ॥५४॥ Jain Education International + [62] ।।४८।। For Private & Personal Use Only ॥४९॥ ॥५५॥ ॥५६॥ ॥५७॥ ॥५८॥ www.jainelibrary.orgPage Navigation
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