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उम्मबल हार मोतीवणो, गो दुग्ध शंख बखाय हो । गौत। ते थकी ऊजली भति पयी, उलट छत संठाण हो ॥ गोत. ॥ शिव०॥२॥
अजुण स्पर्ण सम दीपती, गैठारी मठारी बाण हो ॥ गौत.॥ पटक रत्न यकी निर्मली, सभाली अत्यंत पखाण हो ॥ गौत०॥ शिव०॥
सिद्ध शिला उलंधी गया, अधर रमा सिर राज हो । गौत०॥ प्रलोक शुं जाई अडया; सार्या मातम काज हो ॥ गौत० ॥ शिव०॥७॥
जन्म नहीं मरणा नहीं, नहीं जरा नहीं रोग हो । गौत। पैरी नहीं मित्रन नहीं, नहीं संजोग विजोग थे। गौत०॥ शिव०॥
भूख नहीं तिरषा नहीं, नहीं हर्ष नहीं सोग हो ॥ मौत.॥ कर्म नहीं काया नहीं, नहीं विषयारस योग हो ॥ गौत०॥ शिव०॥३॥
शब्द रूप रस गंध नहीं, नहीं फरस नहीं वेद हो ॥ गौत०॥ वोले नहीं चाले नहीं, मौनपणु नहीं खेद हो ॥ गौत०॥ शिष०॥१०॥
ग्राम नगर तिहां कोई नहीं, नहीं वस्ती न उजाद हो । गौत०॥ काल सकाल बतें नहीं, रात दिवस तिथि दार हो॥ गौत० ॥ शिव०॥११॥
राजा नहीं परजा नहीं, नहीं ठाकुर नहीं दास हो ॥ गौत। मुक्तिमा गुरु चेला नहीं, नहीं लघु बडाई तास हो ॥ गौत० ॥ शिव ॥१२॥
अनंता सुखमा झीली रथा, अरुपी ज्योति प्रकाश हो ॥ गौत.. सहु कोइने सुख सारीखां, सघलाने अविचल वास्. हो ॥ गौत०॥शिा०॥१३॥ ___ अनंत सिद्ध मुकतें गया, वली अनंता जाय हो । गत। भवर बग्या रुंधे नहीं, ज्योति मां ज्योति समाय हो ॥गौत०॥ शिव० ॥
केवल जान सहित के, केवल दर्शन खास हो । गौत०॥ खायक समाकत दीपतुं, कदीय न होवे उदास हो ॥ गौत० ॥ शिव ॥१२॥
सिर स्वरूप जे भोलखे, भायी मन वैराग हो ।गौत.॥ शिव सुंदरी वेगेवरे, नवको सुक्ख प्रथाग हो ॥ गौत० ॥॥ शिष०॥१६.
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