Book Title: Ek Lakh Parmaro ka Uddhar
Author(s): Navinchandra Vijaymuni
Publisher: Z_Vijyanandsuri_Swargarohan_Shatabdi_Granth_012023.pdf

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Page 6
________________ प्रेरक सान्निध्य और मार्गदर्शन में प्रारंभ हुआ। गुजरात से विहार करते हुए वे राजस्थान में पधारे । यहां बीजोवा में उनके दादा गुरु महेन्द्र पंचांग के रचयिता आचार्य श्री विकास चन्द्रसूरिजी महाराज के करकमलों ससे सन् १९४५ में उनकी बड़ी दीक्षा सम्पन्न हुई। अपनी दीक्षा के सात वर्ष के बाद वे सन् १९४८ में सादड़ी (राजस्थान) में बिराजित पंजाब केसरी, युगवीर आचार्य श्रीमद् विजय वल्लभ सूरीश्वरजी महाराज की छत्रछाया में आ गए। यहीं से उनका वास्तविक विकास प्रारंभ हुआ। यहाँ उन्होंने संस्कृत, प्राकृत और हिन्दी भाषा का ज्ञान प्राप्त किया। उन भाषाओं के साहित्य का अध्ययन किया । अपने गुरु के पास न रहकर अब वे आचार्य श्रीमद् विजय वल्लभ सूरीश्वरजी महाराज की सेवा में ही रहने लगे। उनका पावन सानिध्य, स्नेह और वात्सल्य उन्हें नयी प्रेरणा देता था। उनके आचारों, विचारों, आदर्शों और कार्यों का मुनि श्री इन्द्र विजयजी के ऊपर गहरा प्रभाव पड़ा। अपनी सूझबूझ, गुरुकृपा एवं योग्यता के बल पर वे शीघ्र ही विद्वान मुनिराज बन गए। सन् १९५४ की आश्विन कृष्ण दशमी की रात्रि को पंजाब केसरी, युगवीर आचार्य श्रीमद् विजय वल्लभ सूरीश्वरजी महाराज का बम्बई में स्वर्गवास हो गया। समग्र जैन समाज शोक में डूब गया। उनके स्वर्गवास से जैन धर्म और समाज की अपूरणीय क्षति हुई जिसकी पूर्ति आज तक न हुई है, न होगी। वह दैदिप्यमान नक्षत्र जिसके दिव्य प्रकाश में मानव जाति अपना रास्ता खोजती थी, अंधकार में डूब गया। मुनि श्री इन्द्र विजयजी महाराज ने योगोद्वहन किए। उनके पास एक मुमुक्षु ने दीक्षा अंगीकार की जिनका नाम मुनि ओंकार विजयजी रखा गया। वे शान्तमूर्ति आचार्य श्री समुद्र सूरीश्वरजी महाराज के साथ विहार कर बम्बई से सूरत पधारे । यहाँ उन्हें आचार्य श्री ने सन् १९५४ चैत्र कृष्णा तृतीया के दिन गणिपद से अलंकृत किया। . अब गणि श्री इन्द्र विजयजी महाराज स्वतंत्र रूप से कार्य करने में सक्षम हो गए थे। सर्वप्रथम उन्होंने अपने जन्मक्षेत्र में और परमार क्षत्रिय वंश में जैन धर्म के प्रचार का महान कार्य करने का संकल्प किया। इसके लिए उन्हें मुनि श्री जिनभद्र विजयजी पहले से ही प्रेरित कर चुके थे। धर्म के प्रचार का यह महान कार्य उन्हीं की राह देख रहा था। उन्होंने आचार्य श्री समुद्र सूरीश्वरजी महाराज के चरणों में मस्तक रखा, आशीर्वाद लिया और बड़ौदा जिले के बोड़ेली शहर में पहुंचे। श्री विजयानंद सूरि स्वर्गारोहण शताब्दी ग्रंथ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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