Book Title: Ek Lakh Parmaro ka Uddhar Author(s): Navinchandra Vijaymuni Publisher: Z_Vijyanandsuri_Swargarohan_Shatabdi_Granth_012023.pdf View full book textPage 5
________________ इन दो सौ अस्सी भाइयों ने सालपुरा के रणछोड़भाई गोपालदास नाम के सद्गृहस्थ भी थे । उनकी पत्नी का नाम बालूबहन था । उनके घर ई. सन् १९२३ में एक पुत्र रत्न का जन्म हुआ । जिनका नाम उन्होंने मोहनकुमार रखा । कुमार मोहन ने प्रारम्भिक अक्षरज्ञान गांव की छोटी सी स्कूल में प्राप्त किया । ग्यारह वर्ष की अवस्था में वे सालपुरा से बाईस कि. मी. दूर डभोई में पंन्यास श्रीरंगविजयजी महाराज के पास चले गए । वहाँ उन्होंने जैन धर्म का प्राथमिक ज्ञान प्राप्त किया । ई. सन् १९३६ में पंन्यास श्रीरंग बिजयजी की प्रेरणा से बोडेली में परमार क्षत्रिय भाईयों के बच्चों के लिए 'कुमार छात्रालय' की स्थापना की गई। कुमार मोहन डभोई से बोडेली आ गए। यहां वे धार्मिक और व्यावहारिक दोनों प्रकार की शिक्षा ग्रहण करने लगे। जब कुमार मोहन दस वर्ष के थे उस समय उनके माता-पिता की मृत्यु हो गई थी। अपनी उम्र के सत्रह वर्ष तक वे बोडेली छात्रालय में पढ़ते रहे । कुमार मोहन के हृदय में बचपन से ही वैराग्य के बीज पड़ गए थे । वे बीज अब अंकुरित होकर पुष्पित और पल्लवित हो गए थे। उन्होंने अपने चाचा सीताभाई से कहा- “मैं सांसारिक मोहजाल में फँसनना नहीं चाहता । में दीक्षा लेकर आत्मकल्याण करना चाहता हूँ ।" यद्यपि उनके चाचा नहीं चाहते थे कि मोहन दीक्षा ले; पर कुमार मोहन के दृढ़ निर्णय के आगे वे झुक गए। न चाहते हुए भी उन्होंने कुमार मोहन को भारी मन से आंखों से आंसू लिए दीक्षा के लिए विदा किया । सत्रह वर्षीय कुमार मोहन दीक्षाग्रहण के लिए नरसंडा (गुजरात) में बिराजित मुनि श्री विनय विजयजी महाराज के चरणों में उपस्थित हुए। मुनि श्री विनय विजयजी से कुमार मोहन का परिचय बोडेली में ही हो गया था जब मुनि श्री विनय विजयजी जीवनलालजी के नाम से बोडेली में जैन धर्म का रचार का कार्य कर रहे थे । मुनि श्री विनय विजयजी कुमार मोहन को अच्छी तरह जानते थे। उनकी विनय, नम्रता, सरलता, , वैराग्य और अध्यवसाय से पूर्णतया अवगत थे । अत: उन्होंने कुमार मोहन की योग्यता औ पात्रता देखकर ई. सन् १९४१ में नरसंडा गांव में दीक्षा दे दी। उनका नया नाम रखा गया मुनि श्री इन्द्र विजयजी महाराज । वे परमार क्षत्रिय वंश के आद्य जैन दीक्षित हुए। मुनि इन्द्र विजय का संकल्प मुनि श्री इन्द्र विजयजी का गहन अध्ययन उनके गुरु मुनि श्री विनय विजयजी के पावन, एक लाख परमारों का उद्धार : बीसवीं सदी का एक ऐतिहासिक कार्य Jain Education International For Private & Personal Use Only ८१ www.jainelibrary.orgPage Navigation
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