Book Title: Dvadashanu Preksha
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 11
________________ सदा मलिन रहता है । । ४३ ।। द्वादशानुप्रेक्षा दुग्गंध बीभच्छं, कलिमलभरिदं अचेयणं मुत्तं । सडणप्पडणसहावं, देहं इदि चिंतए णिच्चं ॥ ४४ ॥ ३५३ यह शरीर दुर्गंध से युक्त है, घृणित है, गंदे मलसे भरा हुआ है, अचेतन है, मूर्तिक है तथा सड़ना और गलना स्वभावसे सहित है ऐसा सदा चिंतन करना चाहिए ।। ४४ ।। रसरुहिरमंसमेदट्ठीमज्जसंकुलं पुत्तपूयकिमिबहुलं । दुग्गंधसुचि चम्ममयमणिच्चमचेयणं पडणं ।। ४५ ।। यह शरीर रस, रुधिर, मांस, चर्बी, हड्डी तथा मज्जासे युक्त है। मूत्र, पीब और कीड़ोंसे भरा है, दुर्गंधित है, अपवित्र है, चर्ममय है, अनित्य है, अचेतन है और पतनशील है -- नश्वर है ।। ४५ ।। देहादो वदिरित्तो, कम्मविरहिओ अनंतसुहणिलयो । चोखो हवे अप्पा, इदि णिच्चं भावणं कुज्जा ।। ४६ ।। आत्मा इस शरीर से भिन्न है, कर्मरहित है, अनंत सुखोंका भंडार है तथा श्रेष्ठ है इस प्रकार निरंतर भावना करनी चाहिए ।। ४६ ।। आस्रवानुप्रेक्षा मिच्छत्तं अविरमणं, कसायजोगा य आसवा होंति । पण पण चउ तिय भेदा, सम्मं परिकित्तिदा समए ।। ४७ ।। मिथ्यात्व, अविरति, कषाय और योग ये आस्रव हैं। उक्त मिथ्यात्व आदि आस्रव क्रमसे पाँच, पाँच, चार और तीन भेदोंसे युक्त हैं । आगममें इनका अच्छी तरह वर्णन किया गया है ।। ४७ ।। मिथ्यात्व तथा अविरतिके पाँच भेद एयंतविणयविवरियसंसयमण्णाणमिदि हवे पंच । अविरमणं हिंसादी, पंचविहो सो हवइ णियमेण । । ४८ । । एकांत, विनय, विपरीत, संशय और अज्ञान यह पाँच प्रकारका मिथ्यात्व है तथा हिंसा आदिके भेदसे पाँच प्रकारकी अविरति नियमसे होती है । । ४८ ।। चार कषाय और तीन योग कोहो माणो माया, लोहो वि य चउव्विहं कसायं खु । मण वचिकाएण पुणो, जोगो तिवियप्पमिदि जाणे । । ४९ ।। क्रोध, मान, माया और लोभ यह चार प्रकारकी कषाय है। तथा मन, वचन और कायके भेदसे

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