Book Title: Dvadashanu Preksha
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 16
________________ ३५८ कुदकुद-भारता मार्दव धर्म होता है।।७२।। आर्जव धर्मका लक्षण मोत्तूण कुडिलभावं, णिम्मलहिदएण चरदि जो समणो। अज्जवधम्मं तइओ, तस्स दु संभवदि णियमेण ।।७३।। जो मुनि कुटिलभावको छोड़कर निर्मल हृदयसे आचरण करता है उसके नियमसे तीसरा आर्जव धर्म होता है।।७३।। सत्यधर्मका लक्षण परसंतावणकारणवयणं मोत्तूण सपरहिदवयणं। जो वददि भिक्खु तुरियो, तस्स दु धम्मं हवे सच्चं ।।७४ ।। दूसरोंको संताप करनेवाले वचनको छोड़कर जो भिक्षु स्वपरहितकारी वचन बोलता है उसके चौथा सत्यधर्म होता है।।७४ ।।। __ शौच धर्मका लक्षण कंखाभावणिवित्ति, किच्चा वेरग्गभावणाजुत्तो। जो वड्ढदि परममुणी, तस्स दु धम्मो हवे सोच्चं ।।७५।। जो उत्कृष्ट मुनि कांक्षा भावसे निवृत्ति कर वैराग्यभावसे रहता है उससे शौचधर्म होता है।।७५ ।। संयमधर्मका लक्षण वदसमिदिपालणाए, दंडच्चाएण इंदियजएण। परिणममाणस्स पुणो, संजमधम्मो हवे णियमा।।७६।। मन वचन कायकी प्रवृत्तिरूप दंडको त्यागकर तथा इंद्रियोंको जीतकर जो व्रत और समितियोंसे पालनरूप प्रवृत्ति करता है उसके नियमसे संयमधर्म होता है।।७६।। उत्तम तपका लक्षण विसयकसायविणिग्गहभावं काऊण झाणसज्झाए। जो भावइ अप्पाणं, तस्स तवं होदि णियमेण ।।७७।। विषय और कषायके विनिग्रहरूप भावको करके जो ध्यान और स्वाध्यायके द्वारा आत्माकी भावना करता है उसके नियमसे तप होता है।।७७ ।। णिव्वेगतियं भावइ, मोहं चइऊण सव्वदव्वेसु। जो तस्स हवे चागो, इदि भणिदं जिणवरिंदेहिं ।।७८।।

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