Book Title: Dvadashanu Preksha
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 10
________________ कुंदकुंद-भारती संसारसे छूटा हुआ जीव उपादेय है ऐसा विचार करना चाहिए और संसारके दुःखोंसे आक्रांत जीव छोड़नेयोग्य हैं ऐसा चिंतन करना चाहिए ।। ३८ ।। लोकानुप्रेक्षा जीवादिपयट्टाणं, समवाओ सो णिरुच्चए लोगो । ३५२ तिविहो हवेइ लोगो, अहमज्झिमउडभेण । । ३९ ।। आदि पदार्थों का जो समूह है वह लोक कहा जाता है। अधोलोक, मध्यमलोक और ऊर्ध्वलोक के भेदसे लोक तीन प्रकारका होता है ।। ३९ ।। रिया हवंति हेट्ठा, मज्झे दीवंबुरासयो संखा । सग्गो सिट्टिभेओ, एत्तो उड्डो हवे मोक्खो । ।४०॥ नीचे नरक है, मध्यमें असंख्यात द्वीपसमुद्र हैं ऊपर त्रेसठ भेदोंसे युक्त स्वर्ग हैं और इनके ऊपर मोक्ष है ।। ४० ।। स्वर्गके त्रेसठ भेदोंका वर्णन इगतीस सत्त चत्तारि दोण्णि एक्केक्क छक्क चदुकप्पे । तित्तिय एक्केंकेंदियणामा उडु आदि तेसट्ठी । । ४१ ।। सौधर्म और ऐशान कल्पमें इकतीस, सनत्कुमार और माहेंद्र कल्पमें सात, ब्रह्म और ब्रह्मत् कल्पमें चार, लांतव और कापिष्ठ कल्पमें दो, शुक्र और महाशुक्र कल्पमें एक, शतार और सहस्रार कल्पमें एक तथा आनत प्राणत और अच्युत इन चार अंतके कल्पोंमें छह इस तरह सोलह कल्पोंमें कुल ५२ पटल हैं। इनके आगे अधोग्रैवेयक, मध्यम ग्रैवेयक और उपरिम ग्रैवेयकोंके त्रिकमें प्रत्येकके तीन अर्थात् नौ ग्रैवेयकोंके नौ, अनुदिशोंका एक और अनुत्तर विमानोंका एक पटल है। इस तरह सब मिलाकर ऋतु आदि त्रेसठ पटल हैं । । ४१ ।। असुहेण णिरयतिरियं, सुहउवजोगेण दिविजणरसोक्खं । सुद्धेण लहइ सिद्धिं, एवं लोयं विचिंतिज्जो । ।४२।। शुभपयोगसे नरक और तिर्यंच गति प्राप्त होती है, शुभोपयोगसे देव और मनुष्यगतिका सुख मिलता है और शुद्धोपयोगसे जीव मुक्तिको प्राप्त होता है -- इस प्रकार लोकका विचार करना चाहिए ।। ४२ ।। अशुचित्वानुप्रेक्षा अट्ठीहिं पडिबद्धं, मंसविलित्तं तएण ओच्छण्णं । किमिसंकुलेहिं भरियमचोक्खं देहं सयाकालं । ।४३॥ यह शरीर हड्डियोंसे बना है, मांससे लिपटा है, चर्मसे आच्छादित है, कीटसंकुलोंसे भरा है और

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