Book Title: Drushtant Kathao Author(s): Shrimad Rajchandra, Hansraj Jain Publisher: Shrimad Rajchandra Ashram View full book textPage 2
________________ प्रथमावृत्ति का निवेदन इस छोटी पुस्तिका में श्रीमद् राजचंद्र प्रणीत भावनाबोध में आई हुई बारह भावनाओ संपूर्ण संग्रह किया गया है । यह भावनाएं वैराग्यकी जननी है । भव, तन और भोगोका वास्तविक स्वरूप बतानेवाली है । अतः आत्मा के लिये अत्यंत उपयोगी है। सबसे पहले वैराग्य उपशम की जीवमें बहुत जरूरत है। इसके बिना सच्चा अंतरत्याग नहीं हो सकता । अंदर से आसक्ति नहीं घटने पर आत्मज्ञान की प्राप्ति भी नहीं हो सकती । श्रीमद् राजचंद्र लिखते है कि - 'त्याग विराग न चित्तमां, धाय न तेने ज्ञान' आत्मज्ञान के बिना सब क्लेश और दुःख से जीव मुक्त नहीं हो पायेगा । इसलिए बारह भावनाओंका बार बार चिंतन करनेकी आज्ञा महापुरुषो ने दी है। बारह भावनाओं का भाव आसानीसे समजमें आने के लिए यहाँ पर दृष्टांतो के अनुरूप रंगीन चित्र बनाकर रक्खें गये है। उसी प्रकार 'मोक्षमाला' ग्रंथमें आई हुई दृष्टांतकथाओ के भी रंगीन चित्र बनाकर उनको भी यहाँ पर शामिल किया गया है। सर्व मुमुक्षुओको यह वैराग्यप्रेरक छोटी पुस्तिका संसारके प्रति विरक्तभाव लाने में सहायभूत हो ऐसी हार्दिक शुभेच्छा । (अनुक्रमणिका) भावनाबोधमेंसे पृष्ठ ४ अनित्यभावना (भिखारीका खेद ) .... १ अशरणभावना (अनाथी मुनि) अकत्वभावना (नमिराजर्षि) ८ अन्यत्वभावना (चक्रवर्ती भरतेश्वर) १४ अशुचिभावना ( सनतकुमार ) १९ निवृत्तिबोध (मृगापुत्र) ..............२२ आस्रवभावना ( कुंडरिक) २९ संवरभावना (पुंडरिक, वज्रस्वामी) ३० निर्जराभावना (दृढ प्रहारी ) ......३३ लोकस्वरूपभावना .....३४ बोधदुर्लभ भावना धर्मदुर्लभ भावना मोक्षमालामेंसे बाहुबल कामदेव श्रावक... सत्य (वसुराजा)......... परिग्रहको संकोचना (सुभुम चक्रवर्ती)....४२ सर्व जीवकी रक्षा भाग-१ ......... ..............४४ सर्व जीवकी रक्षा भाग -२........ ( अभयकुमार ) विनयसे तत्त्व की सिद्धि है (श्रेणिक राजा ) ४८ सुदर्शन शेठ... .........५० अनुपम क्षमा (गजसुकुमार) ५२ ..........३६ कपिलमुनि भाग-१-२-३ .........५४ .........३६ मोक्षसुख (एक भद्रिक भील) ५८ - आत्मार्थ इच्छक, पारसभाई जैन, अगास आश्रम ******** पृष्ठ .३६ ..३८ ....४० .४६Page Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 ... 68