Book Title: Dravya Author(s): Narayanlal Kachara Publisher: Narayanlal Kachara View full book textPage 3
________________ 2) दर्शन-सामान्य विशेषात्मक बाह्य पदार्थों को अलग-अलग भेद रूप से ग्रहण नहीं करके, जो सामान्य ग्रहण रूप अवभासना होती है उसे दर्शन कहते हैं। यह गुण आत्मा में पाया जाता हैं। आत्मा की वृत्ति आलोकन या स्वसंवेदन है और वही दर्शन है। 3) सुख-जो स्वाभाविक भाव के आवरण के विनाश होने से आत्मिक शांतरस अथवा जो आनंद उत्पन्न होता है उसे सुख कहते हैं। सुख आत्मा का गुण है। 4) वीर्य - जीव की शक्ति को वीर्य कहते हैं। आत्मा में अनंत वीर्य है। 5) स्पर्श - स्पर्श इन्द्रिय के द्वारा जो जाना जाता है वह स्पर्श है। 6) रस - जो स्वाद को प्राप्त होता है वह रस है। 7) गंध - जो सूंघा जाता है वह गंध है। 8) वर्ण - जो देखा जाता है वह वर्ण है। स्पर्श, रस, गंध और वर्ण पुद्गल के विशेष गुण हैं। स्पर्शादि के जो आठ भेद यहाँ बताए हैं वे मूल भेद हैं। प्रत्येक, स्पर्शादि के संख्यात, असंख्यात और अनन्त भेद होते हैं। 9) गति हेतुत्व - जीव और पुद्गल को गमन में सहकारी होना, गति हेतुत्व है। यह धर्म ___ द्रव्य का विशेष गुण है। 10) स्थिति हेतुत्व – जीव और पुद्गल को ठहरने में सहकारी होना, स्थिति हेतुत्व है। यह अधर्म द्रव्य का विशेष गुण है। ___ 11) अवगाहना हेतुत्व- समस्त द्रव्यों को अवकाश देना, अवगाहन हेतुत्व है। यह आकाश द्रव्य का का विशेष गुण है। 12) वर्तना हेतुत्व - समस्त द्रव्यों के वर्तन (परिणमन) में सहकारी होना वर्तना हेतुत्व है। यह काल द्रव्य का विशेष गुण है। 1.5 पर्याय जो द्रव्य और गुण दोनों के आश्रित है, वह पर्याय है। पूर्व आकार को त्याग कर उत्तर आकार को प्राप्त करना पर्याय रूप है। पर्याय जीव और अजीव दोनों के होती है अतः उसके दो भेद बनते हैं- जीव पर्याय और अजीव पर्याय। परिवर्तन स्थूल भी होता है और सूक्ष्म भी, तदर्थ पर्याय के भी दो भेद बनते हैं - व्यंजन पर्याय और अर्थ पर्याय। व्यंजन पयार्य स्थूल और कालांतर स्थायी है जबकि अर्थ पर्याय सूक्ष्म और वर्तमानवर्ती है। एक अर्थ पर्याय एक समय तक ही रहती हैं। पर्याय के ओर भी दो भेद हैं - स्वभाव पर्याय और विभाव पर्याय । परिवर्तन स्वभाव से भी होता है तथा विभाव से भी। धर्म, अधर्म, आकाश और काल इन चार द्रव्यों में अर्थ पर्याय ही होती है। जीव और पुदगल में दोनों अर्थ पर्यायें और व्यंजन पर्यायें होती हैं। स्वभाव पर्याय सभी द्रव्यों में होती है किन्तु विभाव पर्याय जीव और पुदगल द्रव्य में ही होती है। प्रदेशत्व गुण के विकार को व्यंजन पर्याय कहते हैं और अन्य शेष गुणों के विकार को अर्थ पर्याय कहते हैं। हम चर्म चक्षुओं से जो देखते हैं वह सब विभाव व्यंजन पर्याय है। नर, नारक आदि चौरासी लाख योनियां जीव द्रव्य की विभाव व्यंजन पर्याय हैं। क्रोध - मान, माया, लोभ आदि भी जीव की विभाव व्यंजन पर्याय है। मति आदि ज्ञान विभाव गुण व्यंजन पर्याय हैं। अंत शरीर से कुछ न्यून सिद्ध पर्याय स्वभाव द्रव्य व्यंजन पर्याय हैं। जीव का अनन्त चतुष्टय स्वरूप स्वभाव गुण व्यंजन पर्याय है। शब्द, बंध, सूक्ष्मता, स्थूलता, आकार, खंड, अंधकार, छाया, धूप, चांदनी आदि पुद्गल द्रव्य की विभाव व्यंजन पर्याय है।Page Navigation
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