Book Title: Dravya
Author(s): Narayanlal Kachara
Publisher: Narayanlal Kachara

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Page 9
________________ -एक स्थित हैं, वे कालाणु हैं और असंख्यात द्रव्य हैं। नैश्चयिक काल, जो कि कालाणुओं के रूप में है, वास्तिविक दव्य है और संख्या की अपेक्षा से असंख्यात हैं, क्योकि लोकाकाश के असंखात प्रदेश हैं और प्रत्येक प्रदेश पर एक -एक कालाणु स्थित है। ये कालाणु एक -दूसरे से स्वतंत्र हैं, इसलिए काल द्रव्य अस्तिकाय नहीं बनता। कालाणु- रूप नैश्चयिक काल 'वर्तना' लक्षण के द्धारा जाना जाता है । प्रत्येक द्रव्य के समय -समय में होने वाले परिणमनों में उपादान कारण तो वे स्वम् ही होते है किन्तु इन परिणमनों में निमित रूप से सहायक कालाणु होते हैं और उनकी इस सहकारिता को 'वर्तना' कहते हैं। कुछ आचार्यों के अनुसार द्रव्यों में होने वाले पर्याय- रूप परिवर्तनों में भी प्रति समय जो द्रव्य के ध्रोव्य की अनुभूति होती है, वह वर्तना है। इस वर्तना लक्षण का धारक जो कालाणु द्रव्य है, वह नैश्चयिक काल है। कालाणु स्वयं भी उत्पति , विनाश और धौव्य- रूप त्रिपुटी से युक्त माना गया है। वर्तमान 'समय' की उत्पति होती है , अतीत समय का विनाश और इन दोनों के आधारभूत कालाणु ध्रव रह जाते है। इस प्रकार जो द्रव्य की परिभाषा है, वह कालाणु के लिए लागू होती है और परिणामस्वरूप कालाणु वास्तविक द्रव्य माना गया है । द्रव्यों में नवीन और प्राचीन आदि पर्यायों का समय , धडी, मुहूर्त आदि रूप स्थिति को 'व्यवहारिक काल ' की संज्ञा दी गई है। यह व्यवहारिक काल परिणाम , किया ,परत्व , अपरत्व आदि लक्षणों से जाना जाता है। व्यवहारिक काल आदि और अन्त सहित होता है , जबकि नैश्चयिक काल ( कालाणु ) शाश्वत है- आदि -अंत रहित है। व्यवहारारिक काल स्वयं द्रव्य नहीं है। 3.1 पुद्गलास्तिकाय इस लोक में दो ही मुख्य पदार्थ हैं-जीव और पुद्गल। शेष चारों द्रव्य धर्म, अधर्म, आकाश और काल सहयोग देने वाले उदासीन द्रव्य हैं। पुद्गल शब्द दों अवयवों वाला है -पुद्+गल। पुद् का अर्थ है मिलना, पूरा होना या जुड़ना। गल का अर्थ है गलना अथवा मिटना। अर्थात् जो भेद संघात से पूरण और गलन को प्राप्त हो वे पुद्गल हैं। यह पुद्गल पाँच वर्ण, पाँच रस, दो गंध, आठ स्पर्शी, रूपी, अजीव, शास्वत, अवस्थित तथा लोक का एक अंशभूत द्रव्य है। पुद्गल के सूक्ष्म से सूक्ष्म विभाग परमाणु से लेकर बड़े से बड़े पृथ्वी स्कंध तक में ये गुण वर्ण, रस, गंध आदि विद्यमान रहते हैं। किसी भी समय इनमें से एक का भी अभाव नहीं रहता। इनमें मुख्य-गौण का अंतर हो सकता है। पुद्गलों का प्रदेश समूह अथवा पुद्गल द्रव्यों का समूह पुद्गलास्तिकाय है। द्रव्य की अपेक्षा से पुद्गलास्तिकाय अनंत द्रव्य हैं। क्षेत्र की अपेक्षा वह लोक प्रमाण है। काल की अपेक्षा से वह ध्रुव, नियत, शाश्वत व नित्य है। सदा था, है ओर रहेगा। जिसमें स्पर्श-रस-गंध-वर्ण की अपेक्षा से तथा स्कंध पर्याय की अपेक्षा से पूरण और गलन हो वह पुद्गल है। परमाणुओं के विशेष गुण जो स्पर्श-रस-गंध-वर्ण हैं उनमें होने वाली षट्स्थानपतित वृद्धि वह पूरण है और षट्स्थानपतित हानि वह गलन है। परमाणुओं में स्कंधरूप पर्याय का आविर्भाव होना सो पूरण है और तिरोभाव होना सो गलन है। स्कंध अनेक परमाणुमय एक पर्याय है, इसलिए वह परमाणुओं से अनन्य है, और परमाणु तो पुद्गल है इसलिए स्कंध भी व्यवहार से पुद्गल है। पांचों इन्द्रियों के विषयभूत पदार्थ, चाहे वे कुछ भी क्यों न हों, सर्व पुद्गल ही हैं। अगर कोई भी वस्तु एक भी इन्द्रिय का विषय होती है तब यह जानना चाहिए कि यह पुद्गल है, क्योंकि पौद्गलिक इन्द्रियों के द्वारा पुद्गल ही जाना जा सकता है, अपोद्गलिक नहीं। वर्ण के पांच, गंध के दो, रस के पांच और स्पर्श के आठ भेद पाए जाते हैं। वर्ण के पांच प्रकार :- कृष्ण (Black), नीला (Blue), लाल(Red), पीत (Yellow), और श्वेत (White) गंध के दो प्रकार – सुगंध, दुर्गन्ध

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