Book Title: Dravya
Author(s): Narayanlal Kachara
Publisher: Narayanlal Kachara

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Page 12
________________ केवल ज्ञान मूर्त-अमूर्त सबको जानता है अतः केवली परमाणु को जानते है। अकेवली में अवधिज्ञानी उसे जान सकते हैं। शेष उसे आगम या अनुमान प्रमाण से जानते हैं। कोई एक सूक्ष्म परिणमन रूप स्कंध एवं परमाणु यद्यपि इन्द्रियों के द्वारा ग्रहण करने में नहीं आते तथापि इन पुद्गलों में ऐसी शक्ति है कि यदि वे कालान्तर में स्थूलता को धारण करें तो इन्द्रिय के ग्रहण करने योग्य होते हैं। इस शक्ति की अपेक्षा उनको इन्द्रियग्राह्य ही कहा जाता है। मन अपने विचार से मूर्तिक-अमूर्तिक दोनों वस्तुओं को जानता है। मन जब पदार्थ को ग्रहण करता है तब पदार्थ में नहीं जाता किंतु आप ही संकल्प रूप होकर वस्तु को जानता है। मतिश्रुतज्ञान कासाधन मन एवं इन्द्रियां हैं। मतिश्रुत ज्ञान का विषय समस्त द्रव्यों की कुछ पर्याय हैं। द्रव्य आगम पुद्गल स्वरूप होने पर भी भाव आगम अमूर्तिक है। अमूर्तिक भाव आगम के द्वारा एवं मन अपने विचारों में मूर्त और अमूर्त दोनों प्रकार के पदार्थों को जानता है। संदर्भ 1 षद्रव्य की वैज्ञानिक मीमांसा, डॉ. नारायण लाल कछारा, 2007 2 ब्रह्मण्डीय जैविक, भौतिक एवं रसायन विज्ञान, आचार्य कनकनंदी, 2004 3 स्वतंत्रता के सूत्र, आचार्य कनकनंदी, 1992 4 मोक्ष शास्त्र (तत्वार्थ सूत्र), पं. पन्नालाल जी 'बसन्त', 1978 5 द्रव्य संग्रह आचार्य नेमिचंद सिद्धान्त देव 6 द्रव्य की अवधारणा, साध्वी योगक्षेमप्रभा, 2005 7 विश्व प्रहेलिका, मुनि महेन्द्रकुमार, 1969 8 पंचास्तिकाय 9 अनन्त शक्ति सम्पन्न परमाणु से लेकर परमात्मा, आचार्य कनकनंदी, 2004 10 द्रव्य विज्ञान, साध्वी डॉ. विद्युत प्रभा, 1994 12

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