Book Title: Dr Bhayani nu Madhyakalin Sahitya Abhyas Kshetre Pradhan Author(s): Hasu Yagnik Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 9
________________ June-2005 बने, अवुं आ संसिद्ध कार्य छे. ९. साहित्य अने लोकसाहित्य अभ्यासदृष्टि पडेला हेतु प्रवर्तन दृष्टिना भेद छे, परंतु मध्यकालीन साहित्यना अभ्यासमां ते परस्पर पूरक, उपकारक छे ते डो. भायाणीनां संशोधन द्वारा प्रगट थयुं. मध्यकालीन साहित्यना अभ्यासमा क्यारेक केटलाक प्रश्नो जन्मे छे, तेना केटलाक समाधान के उत्तर कण्ठपरम्परामां मळे छे, ते दर्शाव्युं. मध्यकालीन कृतिओनी हस्तप्रतोमां पण कण्ठस्थ परम्परानां विषय-वस्तुनुं दस्तावेजीकरण केवी रीते थाय छे, थयुं छे ते दर्शाव्युं, लोकसाहित्यमाळाना चौद ग्रन्थोनी पांचेक हजार जेटली रचनाओनुं विषयानुसारी पुनः सम्पादन अने अभ्यास करावीने ओमणे लिखित परम्परा अने कण्ठ परम्पराना अन्योन्याश्रयी ओमणे लिखितपरम्परा अने कण्ठ- परम्पराना अन्योन्याश्रयी अनुबन्धने सदृष्टान्त दर्शाव्यो अने 'लोकसाहित्य'नी प्रचलित विभावना पण फेरविचारणा मागे छे, ते दिशामा ध्यान खेंच्युं. १०. मध्यकालीन साहित्य अने लोकसाहित्य रजूआतनुं समूहभोग्य साहित्य छे अने अमां ज अनुं पूर्ण रूप प्रगट थाय छे ते पर विशेष ध्यान खेंच्युं. पाठसम्पादननिमित्ते विविध शब्दो अने सेना अर्थसन्दर्भनी चर्चा करी तेम प्राकृत- अपभ्रंशादिना प्राचीन छन्दोनी पण चर्चा करी अने विविध गेयढाळोनी देशीओना छन्दबंधारणनुं माळखुं स्पष्ट करतां तिस्र अने चतस्र मात्राओनां आवर्तनो केवी रीते गेय ढाळ बांधे छे ते दर्शाव्युं. आजे पण गवातां ढाळनां इंगितो दस्तावेजी रूपमां हस्तप्रतोमां क्यां मळे छे, तेना पर प्रकाश पाड्यो. जे परम्परागत ढाळमां कोई देशी गवाय के पद-भजन- धून गवाय त्यारे अनुं गानस्वरूप पण अक्षरबद्ध करवुं जोईओ ते ध्यानमां लईने 'हरिवेण वाय छे रे हो वन्नमां' (१९९०), 'गोकुळमां टहूक्या मोर' ( १९९०) अने 'झरमर मेह झबूके वीज' (१९९१) अत्रण संग्रहनी ९० पदरचनाओ छन्दबंधनी चर्चा अने परम्परागत गाननां स्वरांकन साथे आपी. ११. संशोधक भायाणीनुं विशिष्ट अर्पण ते आ प्रकारनां संशोधन-सम्पादन माटे अनिवार्य रीते उपयोगी ओवा कोश अने सूचिग्रन्थोनां निर्माण, प्रकाशन. अमनां मार्गदर्शनमां मध्यकालीन गुजराती कथाओना कोशना बे भाग डॉ. कनुभाई शेठ वसंतभाई दवेओ तैयार कर्या. श्री प्रकाश वेगड, डो. Jain Education International 99 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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