Book Title: Dr Bhayani nu Madhyakalin Sahitya Abhyas Kshetre Pradhan
Author(s): Hasu Yagnik
Publisher: ZZ_Anusandhan
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ June-2005 91 डो. भायाणीनुं मध्यकालीन साहित्य-अभ्यासक्षेत्रे प्रधान हसु याज्ञिक डॉ. हरिवल्लभ भायाणीनुं प्रदान संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश अने जूनी गुजराती ए चारेय भारतीय आर्यभाषाओना अभ्यासक्षेत्रे छे. अर्वाचीन गुजरातीनो जन्म अने तेनी साहित्य परम्परानो विकास आ चार भाषाओना क्रममां थयो छे. आ भाषाओनां ज्ञान-परिशीलन तथा भाषाशास्त्र, बोलीविज्ञान, व्युत्पत्ति अने व्याकरणना अधिकारपूर्ण अभ्यास, पूर्व अने पश्चिमनां मीमांसा अने आधुनिक प्रवाहोनी पण पूरी जाणकारी अने आवा प्राचीन-मध्यकालीन कृतिओनी प्रजाजीवनसंलग्न परम्परानां पण प्रत्यक्ष ज्ञान-अनुभवने कारणे, डॉ. भायाणी आ विशिष्ट शाखाना संशोधन-सम्पादनमां गुजरात उपरांत राष्ट्रीय अने आन्तरराष्ट्रीय कक्षाओ मूल्यवान प्रदान करी शक्या छे. अहीं आवा प्रतिभाशाळी रसमर्मज्ञ पण्डित अने अभ्यासी एवा डो. भायाणीना मध्यकालीन साहित्यना अभ्यासना क्षेत्रमां, अमणे करेलां कार्योने तथा विशिष्ट प्रदानने विलोकवानो उपक्रम छे. आ प्रकारना एमनो अभ्यास कृतिसम्पादन तथा सम्पादित कृतिओनां संशोधन, अर्थदर्शन, भाषान्तर अने आस्वादन एम मुख्य बे वर्गमां मूकी शकाय. प्राचीन-मध्यकालीन कृतिओ परना डॉ. भायाणीना अभ्यासर्नु आरंभबिन्दु एमणे ई.स. १९४५ मा प्रकाशित करेली अब्दुर्रहेमाननी अपभ्रंशमां लखायेली 'सन्देश-रासक'ना पुनःसम्पादित पाठ परनी अभ्यास-भूमिका छे अने गत सदीना अन्तिम वर्ष सुधी, ई. २०००ना उपान्त्य मास सुधी अमनुं संशोधनकार्य अविरत पूरा ५६ वर्ष सुधी चाल्यु. ८४ वर्षना आयुष्यकाळमां अमनां ८६ पुस्तको प्रगट थयां ने तेमां ई. १९९६मा प्रगटेलु 'शोधखोळनी पगदंडी पर' छेल्लु छे तेनो क्रमांक पण ८६मो छे. ते पछीनां वर्षोमां ई. १९९८मां 'पत्रं पुष्पं' अने 'ते हि नो दिवसा...' थयां ते आत्मकथनात्मक पुस्तको पण तेमनां जीवन अने संशोधननां मूळमां रहेला शीलसभर संस्कार अने अभ्यासने समजवामां चावीरूप छे. डो. भायाणीना ८६ ग्रन्थोमां पण विशेष संख्या तो संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश अने जूनी गुजरातीभाषानां संशोधननां पुस्तकोनी ज छे. आमां जे बाकी Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 92 अनुसन्धान ३२ रहे छे ते पण छे तो भाषा, व्याकरणादि परनां ज पुस्तको. ए दृष्टिमां लेतां भायाणी-साहित्य-समग्र संशोधन-सम्पादन ज छे. अमां भाषाशास्त्र अने व्याकरणविषयक १७ अने मीमांसानां ८ पुस्तको छे. संशोधन-सम्पादननां अमनां पुस्तकोमां संस्कृतना लीलावतीसार (१९८३), ध लोस्ट संस्कृत ड्रामाः पुष्पदुषितक एन्ड ध स्टोरी ओफ नंदयन्ती इन जैन ट्रेडिशन (१९९४), एम २ छे. प्राकृतभाषानां पुस्तकोमा संखित्त तरंगवती (१९७९), तारागण (१९८७), वसुदेवहिण्डी मध्यम खण्ड भाग १ (आर. अम. शाह साथे, १९८८) ओम ३ अने अपभ्रंशभाषाना सन्देश-रासकनी प्रस्तावना (१९४५), तेनां पुनःसम्पादित पाठ अने भाषान्तर (१९९९), पउमसिरिचरिय (एम.सी. मोदी साथे, १९४८), पउमचरिय भागः १, २, ३, (१९५३, १९६१), नेमिनाथ-चरिय भाग: १, २ (एम. सी. मोदी साथे, १९७०, १९७१), सनत्कुमार चरिय (एम. सी. मोदी साथे, १९७२), अपभ्रंश लेंग्वेज एन्ड लिटरेचर (१९९०), रउला-वेला (१९९४), छन्दोनुशासनना प्राकृत अने अपभ्रंशना विभागो, भाषान्तर (१९९६), दोहागीतिकोश एन्ड चरियागीतिकोश (१९९७), दोहाकोश ओफ कृष्णपाद, तिलोपाद एम १० छे. जूनी गुजरातीनां पुस्तकोमा मदन मोहना (१९५५), त्रण प्राचीन गूर्जर काव्यो (१९५५), रुस्तमनो सलोको (१९५६), सिंहासन-बत्रीसी वार्ता १८ थी २२ (१९६०, पुनःमुद्रण १९९५) दशमस्कन्ध भागः १, २ (उमाशंकर जोशी साथे, १९६६, १९७२), प्राचीन गूर्जर काव्यसंचय (अगरचन्द नाहटा साथे, १९७५), रयणचूडरास (१९७१), शीलोपदेशमाला बालावबोध (आर. एम. शाह अने गीताबेन साथे, १९९०), नन्दबत्रीसी (कनुभाई शेठ साथे, १९९०), रासलीला (१९८८), पांडवला (१९९१), कृष्णबालचरित (१९९३) अम १२ छे. आम मुख्यत्वे कृतिनिष्ठ संशोधन-सम्पादननां पुस्तको २६ छे. आ उपरांत भारतीय कथासाहित्य (१९८१), लोकसाहित्य सम्पादन अने संशोधन (१९८५), शोध अने स्वाध्याय (१९६१), अनुसन्धान (१९८२), कृष्णकाव्य अने नरसिंह स्वाध्याय' (१९८६), लोककथानां कुळ अने मूळ (१९९०), हस्तप्रतोने आधारे पाठसम्पादन (१९८७), वगेरे विविध निमित्ते थयेलां संशोधन-स्वाध्याय छे.' भारतीयविद्या परनां संशोधन-पत्रो इन्डोलोजीकल स्टडिझ भाग १, २ Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ June-2005 ( १९९३, १९९६) मां संग्रहस्थ थया छे. मध्यकालीन कथाकोश भाग १, २ ( १९९९, २०००) विविध परम्परागत कथाओनां कथानक अने कृतिसन्दर्भ पूरां पाडे छे तो हरिवेण वाय छे रे हो वन्नमां (१९९०), गोकुळमां टहुक्या मोर ( १९९०) अने झरमर मेह झबूके बीज (१९९१) ९० पद - भजनना पाठने सम्पादित रूपमा उपलब्ध बनावे छे अने तेनां छन्दमाप साथै परम्परागत गाननां स्वरांकन आपे छे. मुक्तक मकरन्द (१९९८) अने तरंगवतीनां गुजराती अने हिन्दी अनुवाद (१९९८) प्राकृत न जाणता अभ्यासीने उत्तम अभ्यासक्षम रचनाओ सुलभ अने सुगम बनावे छे. आ बधांने ध्यानमा लेतां ४६ पुस्तको संशोधन-सम्पादननां छे. आ उपरांत भारतीय विद्याभवन, भाषाविमर्श, संबोधि अनुसन्धान अने अनुशीलन जेवा संस्थागत शोधपत्रोनां सम्पादन द्वारा पण साहित्य संशोधननुं कार्य कर्यु. आ कार्य अने पुस्तकोमां प्राचीन मध्यकालीन गद्य-पद्यनी विविध रचनाओनां उत्तम आस्वाद्य भाषान्तरनां प्रपा (१९६८), गाथामाधुरी (१९७६, १९९१), कमळनां तंतु (१९७९, १९९४), जातककथा - मंजूषा (१९९३), कालिदासवन्दना (१९८६), मुक्तकमाधुरी (१९८६), ऋचामाधुरी (१९८७), मुक्तकमंजरी (१९८९, १९९१), त्रिपुटी (१९९५), मुक्तक - अंजलि (१९९६), मुक्तक- मकरन्द (१९९८) वगेरेनो तथा व्याकरण अने भाषाशास्त्रना १७ पुस्तको उमेरो तो मोटाभागनुं कार्य संशोधन साथै ज सम्बन्ध धरावे छे. 93 आम ८४ वर्षना आयुष्यनां ५६ वर्ष संशोधननां छे. आ संशोधक विद्यापुरुषना जीवनना तबक्का ज ओवी रीते गोठवाया के संस्थाना माध्यमथी विद्याकार्य ज अविरत चालतुं रघुं. आरंभनां २० वर्ष मुंबईमां भारतीय विद्याभवन जेवी समृद्ध संस्थामां कार्य कर्तुं अने ते पछी बे दशका गुजरात युनिवर्सिटी अने ला. द. प्राच्यविद्यामन्दिरमां रही संशोधनकार्य कर्यु. ई. १९८५ थी २००० सुधीना दोढ दायकाथी विशेष काळना अन्तिम तबक्कामां गुजरात साहित्य अकादमी, गुजराती साहित्य परिषद, प्राकृत टेक्स्ट सोसायटी, हेमचन्द्राचार्य निधि जेवी संस्थाओना माध्यमथी संशोधन पूर्ण कळाओ विकस्युं. आ संस्थाओमां शिक्षण - मार्गदर्शन द्वारा गुजरातना अभ्यासीओने तथा विदेशना प्राच्यविद्याना पण अनेक अभ्यासीओने मार्गदर्शन आप्युं अने भायाणीकुळना आ अभ्यासीओ द्वारा पण जे संशोधन- सम्पादन थयां, तेने पण डो. भायाणीनां आ क्षेत्रना Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 94 अनुसन्धान ३२ प्रदानमां गणतरीमा लेवा जोईओ. कारण ए के आवां कार्योंमां पण डो. भायाणीनुं मार्गदर्शनथी पण विशेष एवं सक्रिय योगदान छे. केवळ संशोधनसम्पादनने ज जीवननां आटलां वर्षो आप्यां होय अने आट आटलां माध्यमोथी संशोधनना जीवनधर्मने सिद्ध कर्यो होय अवुं बीजुं दृष्टान्त भारतमां के अन्यत्र भाग्ये ज जोवा मळशे ! आ उपरांत पण डो. भायाणीओ विविध निमित्ते विविध राष्ट्रीयअन्तरराष्ट्रीय सेमिनारमा शोधपत्रो रजू कर्यां, विविध संस्थाओमां व्याख्यानो आप्यां, अ निमित्ते पण संशोधनकार्य थयुं. आवा शोधपत्रोनी ज संख्या बसोथी वधारे छे. आमांथी मात्र २० ज संग्रहस्थ थयां छे. शेष छे तेना संचयो प्रगट करीओ तो पांचेक भाग थई शके. डॉ. भायाणीनां शिक्षण- संशोधननी ओक लाक्षणिकता ते तेमनुं पत्रलेखन. देश-विदेशना अनेक अभ्यासीओने संशोधनमां सहाय करता आ विद्यापुरुष कोईनो शोधपत्र के पुस्तक वांचे के तरत ज संशोधनना कोई मुद्दा पर पत्र लखे. जरूरी होय एवा- अटला अंशना झेरोक्ष मोकले. आना अनुसन्धाने जे संशोधनकार्य थयुं, अ पण अहीं ध्यानमां लेवा जेवुं छे. आवा पत्रोनी नकल डो. भायाणीओ राखी नथी, परंतु एना जे प्रत्युत्तर मळ्या, अभ्यासीओ पोतानां प्रकाशनमां सुधारा कर्या के महत्त्वनुं केटलुक शोधपत्र रूपे के आनुषंगिक पाठसुधाराना रूपे प्रगट थयुं ते जळवायुं छे. आवां त्रणेक दृष्टान्तः बौद्ध तान्त्रिको, दीक्षित न होय तेवा लोकोथी चर्यापदोना पाठने सुरक्षित राखवा माटे, शब्दो के अक्षरो वच्चे अश्लील शब्दो, गाळ लखता. आथी कोईना हाथमां हस्तप्रत आवे तो ते 'पीळं' मानीने तजी दे. परंतु पर काईने व्हाईट नामना विदेशी विद्वाने बेंगकोकथी ई. १९८६मां 'अन अन्थोलोजी ओफ बुद्धिस्ट तांत्रिक सोंग्स'नुं पुनः मुद्रण करी डॉ. भायाणीने मोकल्युं. ओमां गाळना शब्दो कौसमां मूकवाथी चर्यापदनो गुप्तपाठ प्रगट थतो हतो. अनी भाषा अपभ्रंश हती. डो. भायाणीओ भ्रष्ट पाठने सुधार्यो अने शब्देशब्दना अर्थ बेसाड्या अने एने आधारे 'रेस्टोरेशन ओफ ध टेक्स्ट ओफ ध चरियागीतिझ' तैयार थयुं, अ प्राकृत टेक्स्ट सोसायटीमां प्रकाशित छे. आवुं बीजुं रसप्रद संशोधन छे ते मतिसारनी कृतिमां विरहिणीओ करेलां चित्रांकननुं छे. रात वहेली गई. चन्द्र मध्य आकाशे पहोंच्यो. लांबा Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ June-2005 95 काळे विरहिणीने प्रियतमनो संयोग थयेलो. ओ अगाशीओ गई अने चारे दिशामां चार सिंह दोरती आवी ! आ हस्तप्रतना चित्रनुं रहस्य डो. भायाणीओ समजाव्यु. चन्द्रमा मृग छे. अथी चन्द्र ज्यारे आथमवा जाय त्यारे चन्द्रमा रहेलुं मृग ज चन्द्रने वारे ! त्यां सिंह होवाने कारणे ! आम मृग चन्द्रने अकेय दिशामां जवा न दे अने अगासीओ आवेलो चन्द्र क्यारेय न आथमे, मध्यमां ज रहे अने विरहिणीने रात पूरी थता ज आवी पड़नार वियोगमांथी मुक्ति मळे ! आ अर्थ डॉ. भायाणीओ समजाव्यो अने विरहिणी तथा चन्द्र, मृग, सिंह, राहु वगेरे साथे संकळायेला आवा सन्दर्भो आप्या ! आq ज फिलिप्स युनि.ना डॉ. मिशेल हानना KR ना सम्पादन-सन्दर्भे 'जलायाहा' के 'जलायहुवा'नी मदनसन्दर्भे पत्र चर्चा छे. डो. भायाणीने एमनी कारकिर्दीना अने संशोधनना आरंभना गाळामा ज भारतीयविद्याभवन जेवी संस्था अने अना ग्रन्थालयनो लाभ मळ्यो ते प्राणवायु जेवो प्रभावक बन्यो. ओ साथे ज जिनविजयजी जेवा समर्थ गुरुने कारणे अपभ्रंश अने प्राकृतना ज्ञानराशिनो लाभ मळ्यो. प्रकृतिथी ज विद्याना ज प्रेम अने ताटस्थ्यने वरेला आ संशोधकने आ गाळामां ज पूर्वना अने पश्चिमना उत्तम विद्वानोना ग्रन्थोनो लाभ मळ्यो. भाषाशास्त्र, व्याकरण, बोलीविज्ञान, व्युत्पत्ति, प्राचीन-मध्यकालीन कृतिओनां पाठसम्पादननी पद्धति, लोकविद्या, शैलीविज्ञान अम अनेक ज्ञानशाखानां पुस्तकोनो अहीं लाभ मळ्यो. पूर्वकाळनी कृतिओना मूळ पाठने सम्पादित कर्या पछी भाषाशास्त्र ज नहीं, परंतु अन्य विद्याशाखाओनी मदद लईने, इन्टर डिसिप्लिनरी अप्रोचथी आवां सर्जन अने तेनां प्रकार, स्वरूप, सामग्रीने पामवानी दृष्टिनुं घडतर थयु. पाठनिर्णय, अर्थदर्शन अने अभ्यासमां पायानी विचारणाना अभिगमनो विकास थयो. आथी ज डॉ. भायाणीनां कार्य द्वारा ज मध्यकालीन साहित्यना अध्ययनमां नवां नवां परिमाणो उमेरायां... डो. भायाणी पहेलो पण मध्यकालीन साहित्य-संशोधनक्षेत्रे समर्थ विद्वानोओ शास्त्रीयकक्षानां सम्पादनो कर्यां हतां. ओ अभ्यासमां शब्दार्थ, छन्द वगेरे दृष्टिले पण विचारायुं हतुं. परंतु डो. भायाणीमां जे विशिष्ट अने विशेष हतुं ते विविध भाषाओ अने भाषाशास्त्रनुं ज्ञान. आ कृतिओना, ते समयना साहित्यना स्वरूपने अने आजना साहित्यथी जुदा पाडनारा भेदने भायाणी ज समजी शक्या, अभ्यासमां उतारीने समजावी शक्या. मध्यकालीन साहित्य Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 96 अनुसन्धान ३२ आजना साहित्यनी जेम कोई एक व्यक्ति निजी एकान्तमां पण आस्वादी शके ए हेतुर्नु नथी परंतु ते रजूआतनुं अने सामुहिक आस्वादन माटे- छे, ते प्रगट रूपमां तेओ दर्शावी शक्या अने संशोधनमां नवु, वास्तविक अभ्यास, अहोभाव के हीनभावथी मुक्त अर्बु, अभ्यासपरिमाण उमेरायु. मानवविद्याओनो इन्टरडिसिप्लिनरी अप्रोच ते पछी ज विकस्यो. डो. भायाणीनां चार भाषाओने विषय करता संशोधन-सम्पादन पर आटलो दृष्टिपात करीने तेमनां संशोधनकार्यनी उपलब्धि अने विशिष्टता तारवीओ तो अमां आवी सिद्धि जोवा मळे छः १. संस्कृत, प्राकृत अने अपभ्रंशनां १५ पुस्तको मुख्यत्वे अंग्रेजीमां छे. तेमां लीलावतीकथा, तरंगवतीकथा, वसुदेवहिण्डी, पद्मचरित, सनत्कुमार चरित वगेरे कथाकृतिओनां सम्पादन-संशोधन छे. आ कथाओ ज काळकमे मध्यकालीन गुजरातीमां रास-प्रबन्धादि स्वरूपोमां ऊतरी आवी छे अने कण्ठपरम्परामां पण ओ रही छे. गुजराती लोकसाहित्यनी रामकथाविषयक रचनाओमां पण केटलीक ओवी छे जेमां जैनस्रोतनी रामकथानी पण असर झिलाई छे. आथी आ संशोधन-सम्पादन मध्यकालीन गुजराती साहित्य अने लोकसाहित्यना अभ्यासमा प्राणभूत रूपमा उपयोगी छे. २. संशोधन-पत्रोना संचयो पण अंग्रेजीमां तथा मुख्यत्वे गुजरातीमां छे. ते पण मध्यकालीन गुजराती साहित्य परना ज अभ्यास छे. ३. पाठसम्पादन अने अभ्यास बन्ने- अणीशुद्ध शास्त्रीयरूप डॉ. भायाणीनां कार्यथी ज पूर्ण अने बहुपाश बन्युं छे. ४. संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश अने जूनी गुजराती मे चारे भाषाओ अने अनां व्याकरण अने साहित्यने पण जाणता होय अवा प्रथम संशोधक विद्वान छे. भाषाशास्त्र, शैलीविज्ञान, पूर्व अने पश्चिमनी प्राचीन अने आधुनिक मीमांसा पण जाणता होय अवा पण प्रथम संशोधक विद्वान छे. पूर्वजाणनार विद्वान पश्चिम, ओछु जाणता होय छे, भाषाशास्त्र-व्याकरणादिना विद्वानने साहित्य, आस्वाद अने विवेचन साथे प्रत्यक्ष सम्बन्ध रहेतो नथी. साहित्यविद्यामां पारंगत विद्वान लोकपरम्परा अने लोकविद्या पर लक्ष राखी शकता नथी. आथी क्यांक संशोधननुं कोई अंक विद्वान- कोई एक अंग क्यांक ऊj ऊतरे छे. डॉ. भायाणीनां संशोधन आवी न्यूनताथी मुक्त Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ June-2005 97 छे. परम्परा अने विद्यामात्रमा तेमनां रसरुचि अने शक्ति-दृष्टि तथा गतिने कारणे अमनां संशोधनो-सम्पादनो बहुपाी , पूर्ण अने तटस्थ वस्तुनिष्ठ मूल्यांकन सिद्ध करी शक्यां. प्राचीन-मध्यकालीन कृतिओना मूळभूत के आदर्श वा आधाररूप पाठनो निर्णय करवानी पद्धति डो. भायाणी पूर्ण शास्त्रीय कक्षाओ सिद्ध करी. पूर्वसूरिओमां पण उत्तम विद्वानो अने भाषाविदो हता ज. परंतु सामान्य रीते तो उपलब्ध हस्तप्रतोमा जे जूनामां जूनी होय अने प्रमाणमां शुद्ध होय ओवी हस्तप्रतने मुख्य मानीने तेनुं सम्पादन करवामां आवतुं अने अन्य हस्तप्रतोना महत्त्वनां पाठान्तरो नोंधवामां आवतां हतां. डॉ. भायाणीओ पण आ पद्धतिनो ज आधार लीधो, परंतु तेओ आवां पाठान्तरोनां कारणोना ऊंडाणमां गया अने समय बदलातां भाषा अने सामाजिक परिस्थिति पण बदलायेली होवाथी पूर्वकालीन कृतिओना समयानुसारी नवावतरण थतुं होय छे ते तेमणे समजाव्युं अने अथी ज भाषाकीय, सामाजिक अने कथानकगत परिवर्तनोनो आलेख आपी शक्या. हस्तप्रतना पाठ- सम्पादन केवी रीते करवू, अ दिशामां विचारतुं प्रथम पुस्तक पण डॉ. भायाणी 'हस्तप्रतोने आधारे पाठसंपादन' (१९८७) ओ नामे आपे छे. अमनां अन्य सम्पादन-संशोधनमा तथा विदेशी अभ्यासीओ साथेनी पत्रचर्चामां पण पाठनिर्णय अंगे मूल्यांकन, चर्चा अने मार्गदर्शन छे. हस्तप्रतोना वाचन अंगेनी कार्यशिबिर-निमित्ते पण ओमणे आ अंगे व्यापक चर्चा करी छे. आ ओक ज मुद्दा पर कोई अलग अभ्यास हाथ धरवामां आवे तो टेक्स्टोनोमी के टेक्स्टोलोजी, शास्त्र बांधवानो पायो नाखी शकीओ, एटलुं मातबर काम छे. कण्ठपरम्पराना पाठने 'मेन्टलटेक्स' कहेवामां आवे छे. ओ कथक के गायकना मनमां होय छे, अकना ओक कथक/गायकनी परम्परागत रचनाओ पाठ हेतु-सन्दर्भ प्रमाणे बदलातो रहे छे. ओ रीते लोकव्याप्त रचनाओना पाठ पण प्रवाही होय छे. लिखित अने कण्ठपरम्परामा पाठपरिवर्तन केम थाय छे, तेनी विविध तबक्के दृष्टान्त सह चर्चा करी- १. मौखिक परम्परामां निरक्षर वर्गमां प्रचलन २. गेयरूपमां शब्दोनी वधधट, फेरफार अने बदलवानो पूरतो अवकाश, ३. शब्द करतां भावनुं महत्त्व, ४. सन Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 98 अनुसन्धान ३२ रचनाओनो एकबीजा पर प्रभाव, ५. लिखित परम्परामां लहियानुं प्राथमिक कक्षा- अक्षरज्ञान, ६. जोडणीनी प्रवाहिता, ७. मौखिक परम्परानो लिखित परम्परा पर प्रभाव, ८. प्रादेशिक भाषा के बोलीओनो प्रभाव - अवां आठ कारणो तारवी आप्यां. (जुओ: शोधखोळनी पगदंडी पर, है. भायाणी, श्री शा.ची. एज्युकेशनल रीसर्च सोसायटी, अमदावाद, १९९७, पृ. ९८) मध्यकालीन साहित्यनां हेतु अने पद्धति आधुनिक साहित्यना विवेचनमूल्यांकनथी तत्त्वत: भिन्न छे, ते प्रथमवार डॉ. भायाणीनां संशोधनसम्पादन द्वारा प्रगट थयुं अने आवा अभ्यासनं शास्त्रीय रूप बंधायं. मध्यकालीन कृतिओनी कथाओने नाटक-नवलकथा जेवा आधुनिक कथाप्रकार अने स्वरूपने आधारे मूलववामां आवती हती अने कथावस्तु, संकलन, पात्रालेखन, समाजदर्शन जेवा रूढ थई चूकेला अभ्यास-माळखामां मूकीने जोवामां आवती हती. आजना साहित्य करतां प्राचीन-मध्यकालीन साहित्य प्रवर्तने तात्त्विक रीते भिन्न छे, ओ तरफ डो. भायाणीओ ध्यान खेंच्य. प्राचीन-मध्यकालीन साहित्य बहधा रजआतनं समूहभोग्य छे. आवी कृतिने भाषाकीय सामाजिक, सांस्कृतिक अने लोकतात्त्विक दृष्टिले तपासवी जोईओ, ते प्रगट कर्यु 'मदनमोहना' (इ. १९५५) द्वारा. ८. प्राचीन-मध्यकालीन कथाओना कथानकनो पृथक्करणात्मक साम्यमूलक अभ्यास पण डो. भायाणीथी आरंभायो. प्राचीनतम भाषाओ अने तेनी कथाओनी जाणकारी, अद्भुत स्मृति, आने-स्टीथ थोम्प्सन जेवा विश्वना नामांकित लोककथाना अभ्यासीओनां पुस्तको, परिशीलन- आवां कारणे डॉ. भायाणीनां संशोधन-सम्पादनमां कथाघटक, कथाबिम्ब, कथाचक्रनी पद्धतिनो आधार लेतो अभ्यास प्रारंभायो. संस्कृत, प्राकृतादि भाषाओनां ज्ञानपरिशीलनने कारणे डो. भायाणी भारतीय लोककथाओनां प्राचीनतम मूळ सुधी पहोंची शक्या अने अनेक कथाओनो पृथक्करणात्मक साम्यमूलक अभ्यास आपी शक्या. अन्य भारतीय भाषाओमां क्यांय आQ कार्य थयु ज न हतुं. श्री नाहटाजी तथा डो. सत्येन्द्र जेवा विद्वानो आथी ज तो तेमनां प्रत्येक अभ्यास-संशोधननां पुस्तको उपरांत प्रकाशित लेखनी ओफप्रिन्टस पण डो. भायाणीने मोकलता. कोई पण भारतीय भाषानी परम्परागत कथाना अभ्यासमां डो. भायाणीनां संशोधनो, कुळ-मूळ शोधवामां उपयोगी For Pri Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ June-2005 बने, अवुं आ संसिद्ध कार्य छे. ९. साहित्य अने लोकसाहित्य अभ्यासदृष्टि पडेला हेतु प्रवर्तन दृष्टिना भेद छे, परंतु मध्यकालीन साहित्यना अभ्यासमां ते परस्पर पूरक, उपकारक छे ते डो. भायाणीनां संशोधन द्वारा प्रगट थयुं. मध्यकालीन साहित्यना अभ्यासमा क्यारेक केटलाक प्रश्नो जन्मे छे, तेना केटलाक समाधान के उत्तर कण्ठपरम्परामां मळे छे, ते दर्शाव्युं. मध्यकालीन कृतिओनी हस्तप्रतोमां पण कण्ठस्थ परम्परानां विषय-वस्तुनुं दस्तावेजीकरण केवी रीते थाय छे, थयुं छे ते दर्शाव्युं, लोकसाहित्यमाळाना चौद ग्रन्थोनी पांचेक हजार जेटली रचनाओनुं विषयानुसारी पुनः सम्पादन अने अभ्यास करावीने ओमणे लिखित परम्परा अने कण्ठ परम्पराना अन्योन्याश्रयी ओमणे लिखितपरम्परा अने कण्ठ- परम्पराना अन्योन्याश्रयी अनुबन्धने सदृष्टान्त दर्शाव्यो अने 'लोकसाहित्य'नी प्रचलित विभावना पण फेरविचारणा मागे छे, ते दिशामा ध्यान खेंच्युं. १०. मध्यकालीन साहित्य अने लोकसाहित्य रजूआतनुं समूहभोग्य साहित्य छे अने अमां ज अनुं पूर्ण रूप प्रगट थाय छे ते पर विशेष ध्यान खेंच्युं. पाठसम्पादननिमित्ते विविध शब्दो अने सेना अर्थसन्दर्भनी चर्चा करी तेम प्राकृत- अपभ्रंशादिना प्राचीन छन्दोनी पण चर्चा करी अने विविध गेयढाळोनी देशीओना छन्दबंधारणनुं माळखुं स्पष्ट करतां तिस्र अने चतस्र मात्राओनां आवर्तनो केवी रीते गेय ढाळ बांधे छे ते दर्शाव्युं. आजे पण गवातां ढाळनां इंगितो दस्तावेजी रूपमां हस्तप्रतोमां क्यां मळे छे, तेना पर प्रकाश पाड्यो. जे परम्परागत ढाळमां कोई देशी गवाय के पद-भजन- धून गवाय त्यारे अनुं गानस्वरूप पण अक्षरबद्ध करवुं जोईओ ते ध्यानमां लईने 'हरिवेण वाय छे रे हो वन्नमां' (१९९०), 'गोकुळमां टहूक्या मोर' ( १९९०) अने 'झरमर मेह झबूके वीज' (१९९१) अत्रण संग्रहनी ९० पदरचनाओ छन्दबंधनी चर्चा अने परम्परागत गाननां स्वरांकन साथे आपी. ११. संशोधक भायाणीनुं विशिष्ट अर्पण ते आ प्रकारनां संशोधन-सम्पादन माटे अनिवार्य रीते उपयोगी ओवा कोश अने सूचिग्रन्थोनां निर्माण, प्रकाशन. अमनां मार्गदर्शनमां मध्यकालीन गुजराती कथाओना कोशना बे भाग डॉ. कनुभाई शेठ वसंतभाई दवेओ तैयार कर्या. श्री प्रकाश वेगड, डो. 99 Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 100 अनुसन्धान 32 बलवंत जानी, श्री किरीट शुक्ल, डॉ. निरंजना वोराओ तेमनां मार्गदर्शनमां संशोधनमा सन्दर्भ सामग्रीनो निर्देश करे ओवा सूचिग्रन्थो प्रगट कर्या. गुजरातनी देशीओना गानना ढाळ भविष्यना अभ्यास माटे जाळवी शकाय ते माटे ध्वनिमुद्रणो कराव्यां अने भालणनी कादम्बरीओनी देशीओना ढाळ पोते गाया अने तेनुं ध्वनिमुद्रण कराव्युं. प्राचीन-मध्यकालीन गद्य-पद्य कृतिओनां आधुनिक वाचको-भावको माटेनां डॉ. भायाणीनां अनुवादो अने पुनःकथन प्रकारनी पालिभाषानी जातकथाओनी वार्तामां ढळेली कृतिओ पण अमनां संशोधन- ज अंग छे. ओ द्वारा अमनुं हेतु तो परम्परागत प्राचीन-मध्यकालीन साहित्यनु केटलुंक उत्तम भाथु साम्प्रत प्रवाहमा रहे अने भविष्यना संशोधकोने आकर्षे, ओ ज रह्यो छे. आ प्रकारमा मर्मज्ञ पण्डितमा रहेली सर्जकता पण प्रगट थाय छे. आन्तर राष्ट्रीय कक्षाए प्रति बे वर्षे मळती भारतीय भाषाओ परना संशोधननी कोन्फरन्समां पण डो, भायाणी प्रेरणारूप अने प्रवृत्त हता. त्रीजी कोन्फरन्सथी ते आठमी कोन्फरन्सना संशोधन-पत्रोमां अनेक स्थळे डॉ. भायाणीनां मार्गदर्शनना सन्दर्भ मळे छे. ओमणे अमना अनुगामीओ अने विद्यार्थीरूप अभ्यासीओने पण आ प्रकारना आन्तरराष्ट्रीय परिसंवाद माटे प्रेर्या अने ओ निमित्ते गुजरातनी साहित्यपरम्परा परना संशोधन-पत्रोने विश्वकक्षाले स्थान मळ्युं. डॉ. भायाणीनो मुख्य हेतु तो आ निमित्ते भारतनी सांस्कृतिक सम्पदाने शोधीने तेने लुप्त थती अटकाववानो हतो. अने से साडा पांच दायकाना अमनां संशोधन-सम्पादन द्वारा सिद्ध कर्यो. आ दिशामा अनेकने प्रेर्या, गतिशील राख्या अने देश-विदेशना भायाणीकुळना अभ्यासीमां सांस्कृतिक सम्पदानी शोधनां मूळ नंखाया अने अना मूल्यने साम्प्रतमां स्थापवानी मथामण जन्मी. आम समयफलक, विषयविस्तार अने विद्योपासनाना सातत्य-संवर्धनने दृष्टिमां राखीओ तो सहेजे कही शकाशेः ___ डो. भायाणी अटले गत सदीना मूर्धन्य संशोधक. हेमचन्द्राचार्य अने यशोविजयजी जेवी ज उज्ज्वळ गुजराती पाण्डित्यनी परम्पराः मेजर इन्टरनेशनल स्कोलर ओफ इन्डोलोजी ! 3, शीतल प्लाझा, लाड सोसायटी पासे, वस्त्रापुर-बोडकदेव, अमदावाद-३८००५४