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अनुसन्धान ३२
आजना साहित्यनी जेम कोई एक व्यक्ति निजी एकान्तमां पण आस्वादी शके ए हेतुर्नु नथी परंतु ते रजूआतनुं अने सामुहिक आस्वादन माटे- छे, ते प्रगट रूपमां तेओ दर्शावी शक्या अने संशोधनमां नवु, वास्तविक अभ्यास, अहोभाव के हीनभावथी मुक्त अर्बु, अभ्यासपरिमाण उमेरायु. मानवविद्याओनो इन्टरडिसिप्लिनरी अप्रोच ते पछी ज विकस्यो.
डो. भायाणीनां चार भाषाओने विषय करता संशोधन-सम्पादन पर आटलो दृष्टिपात करीने तेमनां संशोधनकार्यनी उपलब्धि अने विशिष्टता तारवीओ तो अमां आवी सिद्धि जोवा मळे छः १. संस्कृत, प्राकृत अने अपभ्रंशनां १५ पुस्तको मुख्यत्वे अंग्रेजीमां छे. तेमां
लीलावतीकथा, तरंगवतीकथा, वसुदेवहिण्डी, पद्मचरित, सनत्कुमार चरित वगेरे कथाकृतिओनां सम्पादन-संशोधन छे. आ कथाओ ज काळकमे मध्यकालीन गुजरातीमां रास-प्रबन्धादि स्वरूपोमां ऊतरी आवी छे अने कण्ठपरम्परामां पण ओ रही छे. गुजराती लोकसाहित्यनी रामकथाविषयक रचनाओमां पण केटलीक ओवी छे जेमां जैनस्रोतनी रामकथानी पण असर झिलाई छे. आथी आ संशोधन-सम्पादन मध्यकालीन गुजराती साहित्य
अने लोकसाहित्यना अभ्यासमा प्राणभूत रूपमा उपयोगी छे. २. संशोधन-पत्रोना संचयो पण अंग्रेजीमां तथा मुख्यत्वे गुजरातीमां छे. ते
पण मध्यकालीन गुजराती साहित्य परना ज अभ्यास छे. ३. पाठसम्पादन अने अभ्यास बन्ने- अणीशुद्ध शास्त्रीयरूप डॉ. भायाणीनां
कार्यथी ज पूर्ण अने बहुपाश बन्युं छे. ४. संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश अने जूनी गुजराती मे चारे भाषाओ अने अनां
व्याकरण अने साहित्यने पण जाणता होय अवा प्रथम संशोधक विद्वान छे. भाषाशास्त्र, शैलीविज्ञान, पूर्व अने पश्चिमनी प्राचीन अने आधुनिक मीमांसा पण जाणता होय अवा पण प्रथम संशोधक विद्वान छे. पूर्वजाणनार विद्वान पश्चिम, ओछु जाणता होय छे, भाषाशास्त्र-व्याकरणादिना विद्वानने साहित्य, आस्वाद अने विवेचन साथे प्रत्यक्ष सम्बन्ध रहेतो नथी. साहित्यविद्यामां पारंगत विद्वान लोकपरम्परा अने लोकविद्या पर लक्ष राखी शकता नथी. आथी क्यांक संशोधननुं कोई अंक विद्वान- कोई एक अंग क्यांक ऊj ऊतरे छे. डॉ. भायाणीनां संशोधन आवी न्यूनताथी मुक्त
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