Book Title: Dr Bhayani nu Madhyakalin Sahitya Abhyas Kshetre Pradhan Author(s): Hasu Yagnik Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 1
________________ June-2005 91 डो. भायाणीनुं मध्यकालीन साहित्य-अभ्यासक्षेत्रे प्रधान हसु याज्ञिक डॉ. हरिवल्लभ भायाणीनुं प्रदान संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश अने जूनी गुजराती ए चारेय भारतीय आर्यभाषाओना अभ्यासक्षेत्रे छे. अर्वाचीन गुजरातीनो जन्म अने तेनी साहित्य परम्परानो विकास आ चार भाषाओना क्रममां थयो छे. आ भाषाओनां ज्ञान-परिशीलन तथा भाषाशास्त्र, बोलीविज्ञान, व्युत्पत्ति अने व्याकरणना अधिकारपूर्ण अभ्यास, पूर्व अने पश्चिमनां मीमांसा अने आधुनिक प्रवाहोनी पण पूरी जाणकारी अने आवा प्राचीन-मध्यकालीन कृतिओनी प्रजाजीवनसंलग्न परम्परानां पण प्रत्यक्ष ज्ञान-अनुभवने कारणे, डॉ. भायाणी आ विशिष्ट शाखाना संशोधन-सम्पादनमां गुजरात उपरांत राष्ट्रीय अने आन्तरराष्ट्रीय कक्षाओ मूल्यवान प्रदान करी शक्या छे. अहीं आवा प्रतिभाशाळी रसमर्मज्ञ पण्डित अने अभ्यासी एवा डो. भायाणीना मध्यकालीन साहित्यना अभ्यासना क्षेत्रमां, अमणे करेलां कार्योने तथा विशिष्ट प्रदानने विलोकवानो उपक्रम छे. आ प्रकारना एमनो अभ्यास कृतिसम्पादन तथा सम्पादित कृतिओनां संशोधन, अर्थदर्शन, भाषान्तर अने आस्वादन एम मुख्य बे वर्गमां मूकी शकाय. प्राचीन-मध्यकालीन कृतिओ परना डॉ. भायाणीना अभ्यासर्नु आरंभबिन्दु एमणे ई.स. १९४५ मा प्रकाशित करेली अब्दुर्रहेमाननी अपभ्रंशमां लखायेली 'सन्देश-रासक'ना पुनःसम्पादित पाठ परनी अभ्यास-भूमिका छे अने गत सदीना अन्तिम वर्ष सुधी, ई. २०००ना उपान्त्य मास सुधी अमनुं संशोधनकार्य अविरत पूरा ५६ वर्ष सुधी चाल्यु. ८४ वर्षना आयुष्यकाळमां अमनां ८६ पुस्तको प्रगट थयां ने तेमां ई. १९९६मा प्रगटेलु 'शोधखोळनी पगदंडी पर' छेल्लु छे तेनो क्रमांक पण ८६मो छे. ते पछीनां वर्षोमां ई. १९९८मां 'पत्रं पुष्पं' अने 'ते हि नो दिवसा...' थयां ते आत्मकथनात्मक पुस्तको पण तेमनां जीवन अने संशोधननां मूळमां रहेला शीलसभर संस्कार अने अभ्यासने समजवामां चावीरूप छे. डो. भायाणीना ८६ ग्रन्थोमां पण विशेष संख्या तो संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश अने जूनी गुजरातीभाषानां संशोधननां पुस्तकोनी ज छे. आमां जे बाकी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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