Book Title: Dr Bhayani nu Madhyakalin Sahitya Abhyas Kshetre Pradhan Author(s): Hasu Yagnik Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 7
________________ June-2005 97 छे. परम्परा अने विद्यामात्रमा तेमनां रसरुचि अने शक्ति-दृष्टि तथा गतिने कारणे अमनां संशोधनो-सम्पादनो बहुपाी , पूर्ण अने तटस्थ वस्तुनिष्ठ मूल्यांकन सिद्ध करी शक्यां. प्राचीन-मध्यकालीन कृतिओना मूळभूत के आदर्श वा आधाररूप पाठनो निर्णय करवानी पद्धति डो. भायाणी पूर्ण शास्त्रीय कक्षाओ सिद्ध करी. पूर्वसूरिओमां पण उत्तम विद्वानो अने भाषाविदो हता ज. परंतु सामान्य रीते तो उपलब्ध हस्तप्रतोमा जे जूनामां जूनी होय अने प्रमाणमां शुद्ध होय ओवी हस्तप्रतने मुख्य मानीने तेनुं सम्पादन करवामां आवतुं अने अन्य हस्तप्रतोना महत्त्वनां पाठान्तरो नोंधवामां आवतां हतां. डॉ. भायाणीओ पण आ पद्धतिनो ज आधार लीधो, परंतु तेओ आवां पाठान्तरोनां कारणोना ऊंडाणमां गया अने समय बदलातां भाषा अने सामाजिक परिस्थिति पण बदलायेली होवाथी पूर्वकालीन कृतिओना समयानुसारी नवावतरण थतुं होय छे ते तेमणे समजाव्युं अने अथी ज भाषाकीय, सामाजिक अने कथानकगत परिवर्तनोनो आलेख आपी शक्या. हस्तप्रतना पाठ- सम्पादन केवी रीते करवू, अ दिशामां विचारतुं प्रथम पुस्तक पण डॉ. भायाणी 'हस्तप्रतोने आधारे पाठसंपादन' (१९८७) ओ नामे आपे छे. अमनां अन्य सम्पादन-संशोधनमा तथा विदेशी अभ्यासीओ साथेनी पत्रचर्चामां पण पाठनिर्णय अंगे मूल्यांकन, चर्चा अने मार्गदर्शन छे. हस्तप्रतोना वाचन अंगेनी कार्यशिबिर-निमित्ते पण ओमणे आ अंगे व्यापक चर्चा करी छे. आ ओक ज मुद्दा पर कोई अलग अभ्यास हाथ धरवामां आवे तो टेक्स्टोनोमी के टेक्स्टोलोजी, शास्त्र बांधवानो पायो नाखी शकीओ, एटलुं मातबर काम छे. कण्ठपरम्पराना पाठने 'मेन्टलटेक्स' कहेवामां आवे छे. ओ कथक के गायकना मनमां होय छे, अकना ओक कथक/गायकनी परम्परागत रचनाओ पाठ हेतु-सन्दर्भ प्रमाणे बदलातो रहे छे. ओ रीते लोकव्याप्त रचनाओना पाठ पण प्रवाही होय छे. लिखित अने कण्ठपरम्परामा पाठपरिवर्तन केम थाय छे, तेनी विविध तबक्के दृष्टान्त सह चर्चा करी- १. मौखिक परम्परामां निरक्षर वर्गमां प्रचलन २. गेयरूपमां शब्दोनी वधधट, फेरफार अने बदलवानो पूरतो अवकाश, ३. शब्द करतां भावनुं महत्त्व, ४. सन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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