Book Title: Dighnikayo Part 1
Author(s): Vipassana Research Institute Igatpuri
Publisher: Vipassana Research Institute Igatpuri

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Page 346
________________ संदर्भ-सूची पालि टेक्स्ट सोसायटी (लंदन) – १९७५ पालि टेक्स्ट सोसायटी पृष्ठ संख्या पालि टेक्स्ट सोसायटी प्रथम वाक्यांश वि. वि. वि. वि. वि. वि. पृष्ठ संख्या पंक्ति संख्या 306200000 GM & P wan एवं मे सुतं पन परिब्बाजकस्स अवण्णं भासेय्यु पाणातिपातं पहाय सापदेसं परियन्तवति यथा वा पनेके भोन्तो धनुकं अक्खरिकं (पुरिस - कथं) सूर - कथं यथा वा पनेके भोन्तो रचं उपयानं वा इति एवरूपाय यथा वा पनेके भोन्तो विहितानि अधिवुत्ति पदानि निवासं अनुस्सरति सुखदुक्ख पटिसंवेदी लोको च वझो न परामसति आयुक्खया वा पुञ्जक्खया ब्रह्मना निम्मित्ता ते ठस्सन्ति । ये पन तथेव ठस्सन्ति दिट्ठिट्ठाना एवंगहिता चेतोसमाधिं फुसति ब्राह्मणा एवं आहंसु on om x x w wg vara a a v9marwrLD MAvmwMMAMurar a a aa a arr 35 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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