Book Title: Dighnikayo Part 1
Author(s): Vipassana Research Institute Igatpuri
Publisher: Vipassana Research Institute Igatpuri

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Page 350
________________ संदर्भ-सूची [३९] ११८ १३३ १३४ १३५ १३६ १३७ १२० १२० १२१ १३८ १२२ १३९ १२३ १४० १२४ १४१ १२५ १४२ १४३ १४४ १२६ १२६ १२७ १२८ १२९ १४५ १४६ १३० १४७ १४८ १४९ १३२ १३३ १५० सपरिसो सम्मोदिं भोगा महन्तं उस्सहिम्सु कसिगोरक्के आमन्तेसि इच्छामहं पुरोहितो ब्राह्मणो पटिविरता अभिज्झालुनो पितामहायुगा एवं पि भोतो अथ खो ब्राह्मण इति चत्तारो च अत्थि खो ब्राह्मण अप्पसमारब्भतरो अप्पट्ठत्तरो च कतमो सो भो गोतम सत्त ब्राह्मणो बुद्धपमुखं एवं मे सुतं अकालो खो आवुसो लिच्छविपरिसाय इध महालि इध महालि दिब्बानं सच्छिकिरियाहेतु कतमो पन चतुत्थज्झानं एवं मे सुतं दुतियज्झानं एवं मे सुतं चक्खुना विसुद्धन यं मयं एकच्चं वदेय्यु: "ये इमेसं समनुगाहन्तं समणब्राह्मणानं अजिनानि पि धारेति धम्मे सयं १३४ १५१ १३४ १५२ १३५ १५३ १३६ १३७ १५४ १५५ १५६ १५७ १३८ १३८ १४० १४१ १५८ १५९ १४३ १६० १४४ १४६ १६१ १६२ १४६ १६३ १४७ १६४ १४८ १६५ १४९ १६६ १४९ १६७ १५० १६८ १५१ 39 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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