Book Title: Digambar Jain Sadhu Parichaya
Author(s): Dharmchand Jain
Publisher: Dharmshrut Granthmala

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Page 11
________________ [ ७ ] सिवाय कल्याण नहीं है । सम्यक्त्व और संयमके बिना कल्याण नहीं है । पुद्गल और आत्मा भिन्न हैं, यह ठीक-ठीक समझो। तुम सामान्य रूपसे जानते हो । भाई-बन्धु, माता-पिता पुद्गलसे सम्बन्धित हैं । उनका जीव से कोई सम्बन्ध नहीं। जीव अकेला है । बाबा, जीवका कोई नहीं है। जीव भवभवमें अकेला जायेगा। (मशीन बन्द हो गई ) __ देव पूजा, गुरुपास्ति, स्वाध्याय, संयम तप और दान ये ६ क्रिया कही हैं। असि, मसि, कृषि, शिल्प, विद्या, वाणिज्य ये ६ धन्धे कहे गये हैं । इनसे होनेवाले पापोंको क्षय करनेके लिये उक्त धर्म क्रिया कही गई है । इनसे मोक्ष नहीं मिलता । मोक्ष किसको मिलेगा? केवल आत्मचिन्तनसे मोक्ष मिलेगा और कोई क्रियासे मोक्ष नहीं होता । भगवानकी वाणीपर पूर्ण विश्वास करो। इसके एक शब्दके विश्वाससे मोक्ष जाओगे। सत्यवाणी कौन है ? एक आत्मचिन्तनसे सब साध्य है। और कुछ नहीं है, बाबा! राज्य सुख, सम्पत्ति, सन्तति सब मिलते हैं, मोक्ष नहीं मिलता। मोक्षका कारण एक आत्म-चिन्तन है, इसके सिवाय वह गति प्राप्त नहीं होती। सारांश 'धर्मस्य मूलं दया' प्राणीका रक्षण करना दया है, जिन धर्मका मूल क्या है ? सत्य और अहिंसा है। मुखसे सब सत्य-अहिंसा बोलते हैं। मुखसे भोजन-भोजन कहनेसे क्या पेट भरता है ? भोजन किये बिना पेट नहीं भरता । क्रिया करना चाहिये । बाकी सब काम छोड़ो। सत्य अहिंसा पालो, सत्यमें सम्यक्त्व है और अहिंसामें दया है । किसीको कष्ट मत दो, यह व्यवहारकी बात है । सम्यक्त्व धारण, धारण करो, इसके बिना कल्याण नहीं होता। ( सल्लेखनाके २६ वें दिवस, गुरुवार दिनांक ६-८-५५ ) को श्री कुन्थलगिरि सिद्ध क्षेत्रपर आचार्य श्री द्वारा दिया गया अन्तिम सन्देश)

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