Book Title: Digambar Jain Sadhu Parichaya
Author(s): Dharmchand Jain
Publisher: Dharmshrut Granthmala

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Page 10
________________ [६] इच्छा है तो दर्शन मोहनीयका नाश करो। सम्यक्त्व धारण करो । चारित्र मोहनीयका नाश करो, संयम धारण करो । दोनों मोहनीयका नाश करो । श्रात्माका कल्याण करो हमारा यह प्रदेश है, उपदेश है । मिथ्यात्व कर्मके उदयसे जीव संसार में फिरता है । मिथ्यात्व को नाश करो, सम्यक्त्वको प्राप्त करो, सम्यक्त्वको प्राप्त करो। सम्यक्त्व क्या है ? सम्यक्त्वका वर्णन समयसार, नियमसार पञ्चास्तिकाय, अष्टपाहुड, गोम्मटसार आदि बड़े २ ग्रन्थोंमें है । पर इन पर श्रद्धान कौन करता है ? आत्म कल्याण करने वाला ही इसपर श्रद्धान करता है मिथ्यात्वको धारण मत करो यह हमारा आदेश है, उपदेश है । ओं सिद्धाय नमः । तुम्हें क्या करना चाहिए ? दर्शन मोहनीय कर्मका क्षय करो आत्मचिन्तनसे दर्शन मोहनीयका क्षय होता है । निर्जरा भी ग्रात्म चिन्तनसे होती है । दान-पूजासे, तीर्थ यात्रा से पुण्यबन्ध होता है । हर धर्म कार्यं से पुण्य बन्ध होता है । किन्तु केवलज्ञानका साधन आत्म-चिन्तन है । अनन्त कर्मोंकी निर्जराका साधन आत्म-चिन्तन है । श्रात्मचिन्तन के बिना कर्म निर्जरा नहीं होती है कर्म निर्जराके बिना केवलज्ञान नहीं होता । केवलज्ञान विना मोक्ष नहीं होता। क्या करें ? शास्त्रों में आत्माका ध्यान उत्कृष्ट से ६ घड़ी है, मध्यमसे ४ घड़ी है और जघन्यसे २ घड़ी है । कमसे कम १०-१५ मिनट ध्यान करना चाहिये । हमारा कहना यह है कि ५ मिनट तो आत्म-चिन्तन करो । आत्म-चिन्तन करो । इसके बिना सम्यक्त्व नहीं होता । सम्यक्त्व के बिना संसार भ्रमण नहीं टूटता । जन्म-जरा-मरण नहीं छूटता । सम्यक्त्व धारण करो । सम्यक्त्वके होने पर चारित्र मोहनीयके उदय होनेसे ६६ सागर रहोगे । चारित्र मोहनीय का क्षय करने के लिये संयम धारण करना चाहिए। उसके बिना चारित्र मोहनीयका क्षय नहीं होता । संयम धारण करना चाहिए। डरो मत । संयम धारण किये बिना ७ वां गुणस्थान नहीं होता ७ वें गुणस्थान बिना आत्मचिन्तन नहीं होता । वस्त्रमें ७ वां गुणस्थान नहीं होता । समाधि दो प्रकारकी होती है- १. निर्विकल्प समाधि और २. सविकल्प समाधि । गृहस्थ सविकल्प समाधि धारण करता है। मुनि हुए बिना निर्विकल्प समाधि नहीं होती । बाबानो भीऊ न का ( भाइयों, डरो मत ) । मुनि पदवी धारण करो । इसके बिना निर्विकल्प समाधि नहीं होती । निर्विकल्प समाधि हो तो सम्यक्त्व होता है ऐसा कुन्दकुन्द स्वामी ने कहा है । व्यवहार सम्यक्त्व खरा नहीं है । फूल जैसे फलका कारण है वैसे ही व्यवहार सम्यक्त्व आत्माके अनुभवका कारण है । आत्म अनुभव होने पर खरा सम्यक्त्व होता है । निर्विकल्प समाधि मुनि पद धारण करने पर होती है । ७ वें से १२ वे गुणस्थान पर्यन्त निर्विकल्प समाधि होती है । १३ वें गुरणस्थान में केवलज्ञान होता है, ऐसा शास्त्रमें कहा है । आप लोग डरो मत। क्या करें ? संयम धारण करो, सम्यक्त्व धारण करो, इसके

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