Book Title: Dhwanivardhak Ka Prashna Hal Kyo Nahi Hota Kya Vidyut Aagni Hai
Author(s): Amarmuni
Publisher: Z_Pragna_se_Dharm_ki_Samiksha_Part_02_003409_HR.pdf

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Page 7
________________ प्रयोगसिद्ध वैज्ञानिक मान्यता के अनुसार प्रत्येक तत्त्व के परमाणु कं बीच एक केन्द्रीय भाग होता है, जिसे नाभिक कहते हैं । नाभिक के चारों तरफ बहुत ही हल्के कण, जिनको इलेक्ट्रोन कहते हैं, भिन्न-भिन्न कक्षाओं में परिक्रमा करते रहते हैं। ये कण ऋण विद्युत् से आविष्ट होते हैं। नाभिक में धन विद्युत् से आविष्ट कुछ कण होते हैं, जिन्हें प्रोटोन कहते हैं तथा कुछ आवेशरहित कण होते हैं, जिन्हें न्यूट्रोन कहते हैं। साधारण अवस्था में जब प्रोटोनों तथा इलेक्ट्रोनों की संख्या बराबर होती है, तो परमाणु उदासीन होता है । परन्तु परमाणु की बाहरी कक्षा से इलेक्ट्रोन कुछ रीतियों से बाहर निकाला जा सकता है और उसमें जोड़ा भी जा सकता है। जिस वस्तु के परमाणुओं की बाहरी कक्षा से इलेक्ट्रोन निकल जाते हैं, वह धन विद्युन्मय तथा जिसमें आ जाते हैं वह ऋण विद्युन्मय हो जाती है। संक्षेप में विद्युत् की परिभाषा की जाए तो हम कह सकते हैं कि इलैक्ट्रोनों का प्रवाह ही विद्युत् धारा है अर्थात् विद्युत् आवेश के प्रवाह को विद्युत धारा कहते हैं। यह विद्युन्मय होने का प्रयोगसिद्ध आधुनिक सिद्धान्त सर जे.जे. टाम्सन के अनुसंधानों पर निर्भर है। यह विद्युत् की स्पष्ट वैज्ञानिक दृष्टि है, जो सर्वत्र आदृत है। विद्युत् एक अदृश्य ऊर्जा है (Energy) है। कार्य के द्वारा ही उसे जाना जाता है। तार आदि में बिजली है या नहीं, यह देख कर नहीं, छूकर ही जान सकते हैं या यंत्रों के माध्यम से। वर्तमान युग में विद्युत् ही औद्योगिक क्रान्ति का सूत्रधार है। विद्युत् के ऐसे ऐसे अद्भूत चमत्कार हैं, जो कभी दैवी चमत्कार समझे जाते थे। विद्युत् तरंगों के द्वारा ही रेडियों का आविष्कार हुआ है, जिससे हम लाखों-करोड़ों मील दूर की बात सुन सकतें हैं। टेलीविजन के माध्यम से लाखों-करोड़ों मील दूर के दृश्य ऐसे देख सकते हैं, जैसे आँखों के सामने किसी चीज को देख रहे हों । विद्युतधारा के द्वारा ही विशाल शक्तिशाली चुंबकों का निर्माण होता है, जिससे भारोत्तोलन आदि के आश्चर्यजनक काम होते हैं। सर्दी में गर्मी और गर्मी में सर्दी के ऋतुसुख का अवतरण भी आज विद्युत् का साध ारण खेल है। आज मानव के चरण चाँद पर हैं, इसलिए कि आणविक विद्युत् शक्ति ने जादू का-सा काम किया है। ध्वनिवर्धक का प्रश्न हल क्यों नहीं होता? क्या विद्युत अग्नि है ? 97 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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