Book Title: Dhwanivardhak Ka Prashna Hal Kyo Nahi Hota Kya Vidyut Aagni Hai
Author(s): Amarmuni
Publisher: Z_Pragna_se_Dharm_ki_Samiksha_Part_02_003409_HR.pdf
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जैन आगमों के अनुसार अग्निकाय अढाई द्वीप समुद्र पर्यन्त मनुष्यक्षेत्र तक ही सीमित है।15 मनुष्य क्षेत्र के सिवा अन्यत्र कहीं अग्नि नहीं होती है। परन्तु राजप्रश्नीय के सूर्याभदेवाधिकार में स्वर्ग में भी धूप दान का वर्णन है। वह क्या है? स्वर्ग में तो अग्नि नहीं है। भगवती सूत्र (3/1/136) में ईशानेन्द्र का वर्णन है। उसने दूसरे देवलोक से ज्यों ही पाताललोकान्तर्गत बलिचंचा राजधानी को देखा, वह जलते अंगारों के समान दहकने लगी, भस्म होने लगी! क्या ईशानेन्द्र की आँखों में वस्तुतः अग्नि थी? पहले सौधर्मेन्द्र ने जब चमरेन्द्रपर अपना वज्र छोड़ा तो उसमें से हजारों-हजार ज्वालाएँ निकलने लगी और वह वज्र अग्नि से भी अधिक प्रदीप्त हो गया। क्या यह सब भी अग्नि है? स्वर्ग में अग्नि के अस्तित्व का निषेध है। इसका स्पष्ट अर्थ यह है कि वह अग्नि नहीं, कुछ और ही चीज है। नरक में भी आग जलती हुई बताई गयी है, 17 जबकि वहाँ शास्त्रानुसार आग होती नहीं है।
__ अग्नि ही नहीं, अन्य अचित्त पुद्गल भी उष्ण होते हैं और प्रकाश आदि की क्रियाएँ करते हैं। भगवती सूत्र में गौतम का प्रश्न है कि भगवन् ! क्या अचित्त जड़ पुद्गल भी चमकते हैं, तपते हैं और आसपास में प्रकाश करते हैं? भगवान् ने उत्तर स्वीकृति में दिया है, अचित्त पुद्गलों को प्रकाशक माना है। "अचित्ता वि पोग्गला ओभासंति उज्जोवेंति, तवेंति, पभासंति? हंता अत्थि।" -भग. 7/10/307
अरंडी या ऊन का वस्त्र भी विद्युत् विसर्जन की क्रिया करता है। सर्दी में रात के समय जब अरंडी या ऊन के वस्त्र को झटकते हैं तो उसमें से इध र-उधर चिनगारियाँ चमकती दिखाई देती हैं, स्फुलिंग उड़ते नजर आते हैं, चर्र चर्र की ध्वनि भी होती है। प्रश्न है, यह सब क्या है? क्या सचमुच में यह अग्नि है? यह अग्नि नहीं है। सब विद्युत का तमाशा है, और कुछ नहीं। टैरिलिन में भी विद्युत् आ जाती है। टैरेलिन पहनने वाले जानते हैं-विद्यत के कारण शरीर पर के बाल कैसे तनकर खड़े हो जाते हैं। और टैरेलिन में से चमक भी खब निकलती है। पर वह अग्नि नहीं है, विद्युत् है। विद्युत् से अग्नि तो लग जाती है न?
कितने ही महानुभाव तर्क करते हैं कि बिजली से अग्नि लग जाती है। बिजली से आग लगने की अनेक घटनाएँ होती देखी गई हैं। उत्तर में कहना है
___102 प्रज्ञा से धर्म की समीक्षा - द्वितीय पुष्प
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